विवाह के बारे में बाइबल की आयतें - Click Bible

Choose Language

विवाह के बारे में बाइबल की आयतें

बाइबल विवाह के बारे में क्या कहती है ?

विवाह के बारे में बाइबल की आयतें

विवाह एक महत्वपूर्ण संस्था है जिसे बाइबल में उच्च सम्मान दिया गया है। यह न केवल दो व्यक्तियों के बीच प्रेम और प्रतिबद्धता का प्रतीक है, बल्कि यह परमेश्वर की योजना का एक अभिन्न हिस्सा भी है। बाइबल विवाह के विभिन्न पहलुओं पर गहन शिक्षाएँ देती है, जिनसे हमें प्रेम, समर्पण, विश्वास और पारस्परिक सम्मान का महत्व समझ में आता है। इस लेख में हम बाइबल के वचनों के माध्यम से विवाह की गहराइयों को समझने की कोशिश करेंगे।

विवाह की स्थापना


बाइबल में विवाह की शुरुआत उत्पत्ति की पुस्तक में होती है। परमेश्वर ने आदम और हव्वा को एक दूसरे का साथी बनाया और उन्हें आशीर्वाद दिया। उत्पत्ति 2:24 में लिखा है, "इस कारण पुरूष अपने माता-पिता को छोड़कर अपनी पत्नी के साथ रहेगा, और वे एक तन बने रहेंगे।" यह वचन विवाह की एकता और सामंजस्य का प्रतीक है।

प्रेम और प्रतिबद्धता


विवाह में प्रेम और प्रतिबद्धता का महत्वपूर्ण स्थान है। 1 कुरिन्थियों 13:4-7 में लिखा है, "प्रेम धीरजवंत है, प्रेम कृपालु है, यह ईर्ष्या नहीं करता, यह शेखी नहीं मारता, यह गर्व नहीं करता। यह अनुचित व्यवहार नहीं करता, यह अपनी भलाई नहीं चाहता, यह झुंझलाता नहीं, बुरा नहीं मानता। अधर्म से आनंदित नहीं होता, परंतु सत्य से आनंदित होता है। यह सब कुछ सहता है, सब कुछ विश्वास करता है, सब कुछ आशा करता है, सब कुछ सहन करता है।" ये वचन विवाह में प्रेम की परिभाषा को स्पष्ट करते हैं और बताते हैं कि सच्चा प्रेम कैसा होना चाहिए।

पति और पत्नी की भूमिकाएँ


बाइबिल में पति और पत्नी की भूमिकाओं पर भी महत्वपूर्ण शिक्षाएँ दी गई हैं। इफिसियों 5:22-23 में लिखा है, "हे पत्नियों, अपने अपने पतियों के आधीन रहो, जैसा प्रभु के आधीन रहती हो। क्योंकि पति पत्नी का सिर है, जैसे कि मसीह कलीसिया का सिर है। वह स्वयं शरीर का उद्धारकर्ता है।" इसी प्रकार, इफिसियों 5:25 में पतियों के लिए कहा गया है, "हे पतियों, अपनी पत्नियों से प्रेम रखो, जैसा मसीह ने भी कलीसिया से प्रेम किया और अपने आप को उसके लिए दे दिया।" इन वचनों से स्पष्ट होता है कि पति और पत्नी को एक दूसरे के प्रति सम्मान और प्रेम का भाव रखना चाहिए।

विवाह की एकता


मत्ती 19:6 में लिखा है, "इसलिए वे अब दो नहीं, बल्कि एक तन हैं। इसलिए जिसे परमेश्वर ने जोड़ा है, उसे मनुष्य अलग न करे।" यह वचन विवाह की स्थिरता और स्थायित्व को दर्शाता है। विवाह केवल एक सामाजिक अनुबंध नहीं है, बल्कि यह एक आध्यात्मिक बंधन है जिसे परमेश्वर ने स्थापित किया है।

पारस्परिक सम्मान


बाइबिल में पारस्परिक सम्मान का भी महत्वपूर्ण स्थान है। 1 पतरस 3:7 में लिखा है, "वैसे ही, हे पतियों, तुम भी ज्ञान के अनुसार अपनी पत्नियों के साथ रहो, और स्त्रियों को दुर्बल पात्र जानकर उनका आदर करो। क्योंकि वे भी तुम्हारे साथ जीवन के अनुग्रह के उत्तराधिकारी हैं। ऐसा न हो कि तुम्हारी प्रार्थनाएं रुक जाएं।" इस वचन से स्पष्ट होता है कि पति और पत्नी को एक दूसरे का आदर करना चाहिए और एक दूसरे की भावनाओं का सम्मान करना चाहिए।

परिवार और बच्चों के प्रति जिम्मेदारी


बाइबिल में विवाह केवल पति और पत्नी के बीच के संबंधों तक सीमित नहीं है, बल्कि यह परिवार और बच्चों के प्रति जिम्मेदारियों को भी समाहित करता है। भजन संहिता 127:3 में लिखा है, "देखो, पुत्र यहोवा के दान हैं, और गर्भ का फल उसका प्रतिफल है।" नीतिवचन 22:6 में कहा गया है, "लड़के को उसी मार्ग पर चलाना, जिस पर उसे चलना चाहिए, और वह वृद्ध होने पर भी उससे नहीं मुड़ेगा।" इन वचनों से स्पष्ट होता है कि बच्चों का पालन-पोषण एक महत्वपूर्ण जिम्मेदारी है जिसे विवाह के माध्यम से निभाया जाता है।

निष्कर्ष


बाइबिल में विवाह को परमेश्वर की योजना का एक महत्वपूर्ण हिस्सा माना गया है। यह प्रेम, समर्पण, विश्वास, और पारस्परिक सम्मान की बुनियाद पर आधारित है। बाइबिल के वचनों से हमें यह सीखने को मिलता है कि विवाह केवल एक सामाजिक अनुबंध नहीं है, बल्कि यह एक आध्यात्मिक बंधन है जिसे परमेश्वर ने स्थापित किया है। विवाह में प्रेम और प्रतिबद्धता का महत्वपूर्ण स्थान है, और पति और पत्नी को एक दूसरे के प्रति सम्मान और आदर का भाव रखना चाहिए। इस प्रकार, बाइबिल की शिक्षाएँ हमें एक स्वस्थ, समृद्ध और स्थायी दांपत्य जीवन जीने की प्रेरणा देती हैं।

विवाह के बारे में बाइबल की आयतें:


बाइबल विवाहित जोड़ों के लिए प्यार के बारे में और विवाह के बारे में शिक्षा, यह प्रेरणादायक आयतें सब सिखाती है।

1 पतरस 4:8

8 और सब में श्रेष्ठ बात यह है कि एक दूसरे से अधिक प्रेम रखो; क्योंकि प्रेम अनेक पापों को ढांप देता है।

रोमियो 12:10

10 भाईचारे के प्रेम से एक दूसरे पर दया रखो; परस्पर आदर करने में एक दूसरे से बढ़ चलो।

इफिसियों 4:31

31 सब प्रकार की कड़वाहट और प्रकोप और क्रोध, और कलह, और निन्दा सब बैरभाव समेत तुम से दूर की जाए।

इफिसियों 4:32


उत्पत्ति 2:24

24 इस कारण पुरूष अपने माता पिता को छोड़कर अपनी पत्नी से मिला रहेगा और वे एक तन बने रहेंगे।

नीतिवचन 5:18

18 तेरा सोता धन्य रहे; और अपनी जवानी की पत्नी के साथ आनन्दित रह।

1 कुरिन्थियों 13:4-8

4 प्रेम धीरजवन्त है, और कृपाल है; प्रेम डाह नहीं करता; प्रेम अपनी बड़ाई नहीं करता, और फूलता नहीं। 5 वह अनरीति नहीं चलता, वह अपनी भलाई नहीं चाहता, झुंझलाता नहीं, बुरा नहीं मानता। 6 कुकर्म से आनन्दित नहीं होता, परन्तु सत्य से आनन्दित होता है। 7 वह सब बातें सह लेता है, सब बातों की प्रतीति करता है, सब बातों की आशा रखता है, सब बातों में धीरज धरता है। 8 प्रेम कभी टलता नहीं; भविष्यद्वाणियां हों, तो समाप्त हो जाएंगी, भाषाएं हो तो जाती रहेंगी; ज्ञान हो, तो मिट जाएगा।

भजन संहिता 19:6

6 वह आकाश की एक छोर से निकलता है, और वह उसकी दूसरी छोर तक चक्कर मारता है; और उसकी गर्मी सब को पहुंचती है॥

फिलिप्पियों 1:9

9 और मैं यह प्रार्थना करता हूं, कि तुम्हारा प्रेम, ज्ञान और सब प्रकार के विवेक सहित और भी बढ़ता जाए।

फिलिप्पियों 4:2

2 मैं यूओदिया को भी समझाता हूं, और सुन्तुखे को भी, कि वे प्रभु में एक मन रहें।

You may also like 


No comments:

Post a Comment