रिश्तों के बारे में बाइबल की शिक्षा
रिश्ते मानव जीवन का एक अभिन्न हिस्सा हैं। वे हमें प्रेम, समर्थन, और प्रेरणा प्रदान करते हैं। बाइबल, जो ईश्वर का वचन है, विभिन्न प्रकार के रिश्तों पर गहन शिक्षाएँ देती है। यह हमें सिखाती है कि कैसे हम अपने रिश्तों को बेहतर बना सकते हैं और एक दूसरे के प्रति प्रेम और सम्मान दिखा सकते हैं। इस लेख में, हम बाइबल के वचनों के माध्यम से रिश्तों के महत्व और उनके सही ढंग से निभाने के तरीके को समझेंगे।
पति-पत्नी के रिश्ते
पति-पत्नी का रिश्ता सबसे महत्वपूर्ण और पवित्र माना गया है। इफिसियों 5:22-23 में लिखा है, "हे पत्नियों, अपने अपने पतियों के आधीन रहो, जैसा प्रभु के आधीन रहती हो। क्योंकि पति पत्नी का सिर है, जैसे कि मसीह कलीसिया का सिर है।" इस वचन से स्पष्ट होता है कि पत्नी को अपने पति के प्रति आदर और सम्मान दिखाना चाहिए। वहीं, पतियों को भी अपनी पत्नियों से प्रेम करना चाहिए। इफिसियों 5:25 में कहा गया है, "हे पतियों, अपनी पत्नियों से प्रेम रखो, जैसा मसीह ने भी कलीसिया से प्रेम किया और अपने आप को उसके लिए दे दिया।"
पति-पत्नी का रिश्ता प्रेम और समर्पण का प्रतीक है। दोनों को एक दूसरे के प्रति ईमानदार और वफादार होना चाहिए। इस रिश्ते में प्रेम, धैर्य और समझ का महत्वपूर्ण स्थान है। कुलुस्सियों 3:18-19 में लिखा है, "हे पत्नियों, अपने अपने पतियों के आधीन रहो, जैसा कि प्रभु में योग्य है। हे पतियों, अपनी पत्नियों से प्रेम रखो, और उनके प्रति कठोर मत हो।"
माता-पिता और बच्चों के रिश्ते
माता-पिता और बच्चों का रिश्ता एक और महत्वपूर्ण संबंध है जिसे बाइबल में उच्च स्थान दिया गया है। इफिसियों 6:1-4 में लिखा है, "हे बालकों, प्रभु में अपने माता-पिता की आज्ञा का पालन करो, क्योंकि यह उचित है। 'अपने पिता और अपनी माता का आदर कर', यह पहली आज्ञा है जिसमें प्रतिज्ञा भी है। ताकि तेरा भला हो, और तू धरती पर लंबी उम्र तक जीवित रहे। और हे पिताओं, अपने बच्चों को क्रोधित न करो, बल्कि प्रभु की शिक्षा और चेतावनी में उनका पालन-पोषण करो।"
बच्चों को अपने माता-पिता का आदर करना चाहिए और उनकी आज्ञा का पालन करना चाहिए। माता-पिता को भी अपने बच्चों के साथ प्रेम और धैर्य से पेश आना चाहिए और उन्हें सही मार्गदर्शन देना चाहिए। नीतिवचन 22:6 में लिखा है, "लड़के को उसी मार्ग पर चलाना, जिस पर उसे चलना चाहिए, और वह वृद्ध होने पर भी उससे नहीं मुड़ेगा।"
मित्रों के रिश्ते
मित्रता भी बाइबल में एक महत्वपूर्ण रिश्ता है। नीतिवचन 17:17 में लिखा है, "मित्र सब समय प्रेम करता है, और विपत्ति के दिन भाई बन जाता है।" एक सच्चा मित्र हमेशा साथ होता है, चाहे परिस्थितियाँ कैसी भी हों। नीतिवचन 18:24 में कहा गया है, "जो मित्रों से मिलता-जुलता रहता है, उसके मित्र बहुत होते हैं, पर एक सच्चा मित्र भाई से बढ़कर प्रेम रखता है।"
मित्रता का रिश्ता विश्वास और समर्थन पर आधारित होता है। नीतिवचन 27:17 में लिखा है, "लोहे से लोहा तेज होता है, और मनुष्य अपने मित्र के मुख से तेज होता है।" सच्चे मित्र एक दूसरे को प्रेरित करते हैं और बेहतर बनाने में मदद करते हैं।
सभी के साथ प्रेम और दया
बाइबल में सिखाया गया है कि हमें सभी के साथ प्रेम और दया का व्यवहार करना चाहिए। रोमियों 12:10 में लिखा है, "भाईचारे के प्रेम से एक दूसरे पर दया दिखाओ। आदर करने में एक दूसरे से बढ़कर रहो।" 1 कुरिन्थियों 13:4-7 में लिखा है, "प्रेम धीरजवंत है, प्रेम कृपालु है, यह ईर्ष्या नहीं करता, यह शेखी नहीं मारता, यह गर्व नहीं करता। यह अनुचित व्यवहार नहीं करता, यह अपनी भलाई नहीं चाहता, यह झुंझलाता नहीं, बुरा नहीं मानता। अधर्म से आनंदित नहीं होता, परंतु सत्य से आनंदित होता है। यह सब कुछ सहता है, सब कुछ विश्वास करता है, सब कुछ आशा करता है, सब कुछ सहन करता है।"
मत्ती 22:39 में लिखा है, "और दूसरी इसी के समान यह है: 'तू अपने पड़ोसी से अपने समान प्रेम रख।'" यह वचन हमें सिखाता है कि हमें अपने पड़ोसियों और समाज के सभी लोगों के प्रति प्रेम और दया का व्यवहार करना चाहिए।
निष्कर्ष
बाइबिल की ये आयतें हमें सिखाती हैं कि हमारे रिश्ते कैसे मजबूत और स्वस्थ हो सकते हैं। चाहे वह पति-पत्नी का रिश्ता हो, माता-पिता और बच्चों का, या मित्रों का, सभी में प्रेम, सम्मान, और धैर्य का महत्वपूर्ण स्थान है। बाइबिल के वचनों से हमें यह समझ में आता है कि रिश्तों में पारस्परिक समर्थन, समझ और समर्पण का महत्व है। इन शिक्षाओं का पालन करके हम अपने जीवन को अधिक प्रेमपूर्ण और सार्थक बना सकते हैं।
बाइबल के इन आयतों को पढे़:
नीतिवचन 13:20
20 बुद्धिमानों की संगति कर, तब तू भी बुद्धिमान हो जाएगा, परन्तु मूर्खों का साथी नाश हो जाएगा।
यूहन्ना 15:13
13 इस से बड़ा प्रेम किसी का नहीं, कि कोई अपने मित्रों के लिये अपना प्राण दे।
कुलुस्सियों 3:23
23 और जो कुछ तुम करते हो, तन मन से करो, यह समझ कर कि मनुष्यों के लिये नहीं परन्तु प्रभु के लिये करते हो।
इब्रानियों 10:24-25
24 और प्रेम, और भले कामों में उक्साने के लिये एक दूसरे की चिन्ता किया करें। 25 और एक दूसरे के साथ इकट्ठा होना ने छोड़ें, जैसे कि कितनों की रीति है, पर एक दूसरे को समझाते रहें; और ज्यों ज्यों उस दिन को निकट आते देखो, त्यों त्यों और भी अधिक यह किया करो॥
1 पतरस 5:6-7
6 इसलिये परमेश्वर के बलवन्त हाथ के नीचे दीनता से रहो, जिस से वह तुम्हें उचित समय पर बढ़ाए। 7 और अपनी सारी चिन्ता उसी पर डाल दो, क्योंकि उस को तुम्हारा ध्यान है।
इफिसियों 4:2-3
2 अर्थात सारी दीनता और नम्रता सहित, और धीरज धरकर प्रेम से एक दूसरे की सह लो। 3 और मेल के बन्ध में आत्मा की एकता रखने का यत्न करो।
नीतिवचन 31:10 -11
10 भली पत्नी कौन पा सकता है? क्योंकि उसका मूल्य मूंगों से भी बहुत अधिक है। उस के पति के मन में उस के प्रति विश्वास है।11 और उसे लाभ की घटी नहीं होती।
निर्गमन 20:12
12 तू अपने पिता और अपनी माता का आदर करना, जिस से जो देश तेरा परमेश्वर यहोवा तुझे देता है उस में तू बहुत दिन तक रहने पाए॥
इफिसियों 6:1-3
1 हे बालकों, प्रभु में अपने माता पिता के आज्ञाकारी बनो, क्योंकि यह उचित है। 2 अपनी माता और पिता का आदर कर (यह पहिली आज्ञा है, जिस के साथ प्रतिज्ञा भी है)। 3 कि तेरा भला हो, और तू धरती पर बहुत दिन जीवित रहे।
2 कुरिन्थियों 5:17-18
17 सो यदि कोई मसीह में है तो वह नई सृष्टि है: पुरानी बातें बीत गई हैं; देखो, वे सब नई हो गईं। 18 और सब बातें परमेश्वर की ओर से हैं, जिस ने मसीह के द्वारा अपने साथ हमारा मेल-मिलाप कर लिया, और मेल-मिलाप की सेवा हमें सौंप दी है।
1 पतरस 1:3-5
3 हमारे प्रभु यीशु मसीह के परमेश्वर और पिता का धन्यवाद दो, जिस ने यीशु मसीह के हुओं में से जी उठने के द्वारा, अपनी बड़ी दया से हमें जीवित आशा के लिये नया जन्म दिया। 4 अर्थात एक अविनाशी और निर्मल, और अजर मीरास के लिए।5 जो तुम्हारे लिये स्वर्ग में रखी है, जिन की रक्षा परमेश्वर की सामर्थ से, विश्वास के द्वारा उस उद्धार के लिये, जो आने वाले समय में प्रगट होने वाली है, की जाती है।
यूहन्ना 3:3
3 यीशु ने उस को उत्तर दिया; कि मैं तुझ से सच सच कहता हूं, यदि कोई नये सिरे से न जन्मे तो परमेश्वर का राज्य देख नहीं सकता।
2 कुरिन्थियों 6:14
14 अविश्वासियों के साथ असमान जूए में न जुतो, क्योंकि धामिर्कता और अधर्म का क्या मेल जोल? या ज्योति और अन्धकार की क्या संगति?
उत्पत्ति 2:18
18 फिर यहोवा परमेश्वर ने कहा, आदम का अकेला रहना अच्छा नहीं; मैं उसके लिये एक ऐसा सहायक बनाऊंगा जो उससे मेल खाए।
यूहन्ना 3:16
16 क्योंकि परमेश्वर ने जगत से ऐसा प्रेम रखा कि उस ने अपना एकलौता पुत्र दे दिया, ताकि जो कोई उस पर विश्वास करे, वह नाश न हो, परन्तु अनन्त जीवन पाए।
नीतिवचन 18:24
24 मित्रों के बढ़ाने से तो नाश होता है, परन्तु ऐसा मित्र होता है, जो भाई से भी अधिक मिला रहता है।
उत्पत्ति 2:24
24 इस कारण पुरूष अपने माता पिता को छोड़कर अपनी पत्नी से मिला रहेगा और वे एक तन बने रहेंगे।
1 कुरिन्थियों 6:18
18 व्यभिचार से बचे रहो: जितने और पाप मनुष्य करता है, वे देह के बाहर हैं, परन्तु व्यभिचार करने वाला अपनी ही देह के विरूद्ध पाप करता है।
लैव्यवस्था 18:22
22 स्त्रीगमन की रीति पुरूषगमन न करना; वह तो घिनौना काम है।
नीतिवचन 17:17
17 मित्र सब समयों में प्रेम रखता है, और विपत्ति के दिन भाई बन जाता है।
1 कुरिन्थियों 7:5
5 तुम एक दूसरे से अलग न रहो; परन्तु केवल कुछ समय तक आपस की सम्मति से कि प्रार्थना के लिये अवकाश मिले, और फिर एक साथ रहो, ऐसा न हो, कि तुम्हारे असंयम के कारण शैतान तुम्हें परखे।
You may also like
Love is great things..
जवाब देंहटाएं