ऊकाब पक्षी के समान नया बल - यशायाह 40: 31 Isaiah 40:31 Meaning
बाइबल दर्शाती है यशायाह 40 वें अध्याय और उसके 31 वें वचन में "परन्तु जो यहोवा की बाट जोहते हैं, वे नया बल प्राप्त करते जाएंगे, वे उकाबों की नाईं उड़ेंगे, वे दौड़ेंगे और श्रमित न होंगे, चलेंगे और थकित न होंगे।" [यशायाह 40:31]
यहां इस वचन में परमेश्वर उकाब पक्षी के बारे में जिक्र करते हुए कुछ बताते हैं, तो दोस्तों, पहले हम उकाब पक्षी के बारे में कुछ सिखेगें की उकाब पक्षी किस प्रकार का होता है? उकाब पक्षी कि आयु 70 वर्ष कि होती है तथा 40 वें वर्ष में वह ढलने लगता है, 40वें वर्ष में आने के बाद उस पक्षी के नाखुन टूटने लगते हैं तथा उनमें कुछ कार्य करने की क्षमता नहीं बचती और उसकी चोंच भी उम्र बढ़ने के कारण टेड़ी हो जाती है और वें पंख जिनसे वह उड़ता है काफी भारी हो जाती है और उसके सिने के साथ चिपक जातें हैं। जिससे उस पक्षी को उड़ने में तकलीफ होती है तथा इन मुस्किलों के चलते वह शिकार भी नहीं कर पाता क्योंकि उड़ नहीं पाता है।
उसे बहुत सी मुस्किलों का सामना 40 वर्ष हम के पश्चात करना पड़ता है। उस समय उसकी दशा ऐसी होती है जैसे कोई मनुष्य निर्बल, बेसाहारा ,दूखी तथा तक़लिफों से घेरा हुआ होता है। उसे उस समय या तो अपनी जिंदगी समाप्त करने की भावना आती है या फिर अपने जीवन को सही तरीके से आनंद के साथ जिने की चाहत होती है।
उकाब पक्षी भी या तो 40 वर्ष के पश्चात अपनी जिंदगी को समाप्त कर लें या 150 दिनों की मेहनत से फिर अपनी जिंदगी को नया कर सकता है। किस प्रकार से वह अपने जीवन को नया कर पाता है तो चलिए जानतें हैं - उकाब पक्षी पहाड़ों पर जाता है तथा पत्थरों पर अपनी चोंच को मारता है, इतना चोंच को पत्थर पर मारता है कि वह टूट जाती है और जब कुछ समय बात नयी चोंच आती है तो वह उससे अपने नाखून जड़ से उखाड़ देता है।
फिर जब नये नाखून आ जाते हैं तो वह अपनी चोंच नाखूनो की सहायता से अपने पंख उखाड़ देता है जो उसके सिने से चिपके होते हैं। फिर जब किसी तरह उसे पांच महीने मेहनत करनी पड़ती है। तब जब नये नाखून, नयी चोंच वह नये पंख आ जाते हैं तो वह फिर से नयी उड़ान भरता है। तथा नये बल के साथ फिर से नये जन्म का सा अनुभव करता है।
बिल्कुल इसी तरह परमेश्वर हमें भी सिखाता है कि जो यहोवा की बाट जोहते हैं " वे नया बल प्राप्त करते जाएंगे।" जब हम भी निराश में, दूखो में, तक़लिफों में व बिमारियों में अपना जीवन बिता रहें होते हैं, तो की बार मनुष्यों के जीवन में भी अपने जीवन को समाप्त करने की विचार आ जाते हैं तथा वे अपने जीवन से हार जातें हैं। परन्तु जो सच्चे व जीवित परमेश्वर को जान लेता है तथा अपनी हर तकलीफ को उस पर डाल देता है तथा उसी पर भरोसा करता है वे भी उकाब पक्षी के समान नया बल पाता है।
और नया जन्म पाता है मसीह में आने के बाद कुछ समय हमें भी बहुत मेहनत करनी होती है, जैसे- अपने पुराने स्वभाव त्यागना, बुराईयों से मन फिराना तथा अपनी कमजोरियों में अपनी शरीर व आत्मा में विजय पाना। इस मुश्किल समयों के बाद जब हमारी जड़ें परमेश्वर में गहरी हो जाती है, तब हम भी एक नये उड़ान के साथ एक नये बल के साथ और एक नये आनंद के साथ अपने जीवन को जी पाते हैं।
इस विश्वास योग्यता के साथ की प्रभु यीशु मसीह ही हमारा बल है तथा हमारा सामर्थ्य है। जो हमें कभी जीवन में थकने या हारने नहीं देता। तथा एक आनंद की भरपूरी से हम सदा हर कठिन परिस्थिति में चल पातें हैं। चाहे कितने भी आंधी तुफान आ जाए परन्तु जो यहोवा की बाट जोहता है तथा उसे ही अपना मुक्ती दाता स्विकार करता है। हर प्रकार की आंधी तुफानों से भी पार हो जाता है।
कहीं हार तथा उसमें डुबकर अपना जीवन नाश नहीं करता है। बाइबल ऐसा बताती है " क्योंकि परमेश्वर ने हमें भय की नहीं पर सामर्थ, और प्रेम, और संयम की आत्मा दी है।" [ 2 तीमुथियुस 1:7 ] जो प्रभु यीशु को स्विकार करने से हमें में मिलती है।
हमें भी उकाब पक्षी से प्रेरणा लेनी चाहिए की किस तरह वह अपनी तकलीफों से लड़ - लड़ कर भी नया बल प्राप्त करता है तथा फिर से उड़ान भरता है। अपने जीवन को समाप्त होने नहीं देता। इसी तरह हमें भी बड़ी सी बड़ी मुशिबतों को पार करना व उन पर जीत ना आना चाहिए। उनमें डुब कर अपना जीवन समाप्त नहीं करना चाहिए।
क्योंकि हमें छुड़ाने वाला, नया बल देने वाला तथा कभी ना छोड़ने वाला परमेश्वर हमारे साथ है। जिसकी हमें सदा बाट जोहनी चाहिए। तथा केवल उसी पर भरोसा रखना चाहिए। तभी हम भी उकाब पक्षी की तरह नयी उड़ान भर सकतें हैं तथा आनंद के साथ नये बल के साथ एक उत्साहिक जीवन जी सकते हैं। जो हमारे प्रभु यीशु मसीह ने हमें दिया है।
परमेश्वर इस वचन के द्वारा आपको आशीष दे।
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