प्रेम सबसे उत्तम मार्ग - 1 कुरिन्थियों 13 :1-10 " बाइबल दर्शाती है इस अध्याय में कि संत पौलुस यहां प्रेम के विषय कुरिन्थियों को कलिशिया को संदेश दे रहें हैं कि सबसे बढ़कर हमें एक दूसरे से प्रेम रखना है क्योंकि परमेश्वर ही प्रेम है। तथा प्रेम परमेश्वर ने सभी मनुष्यों से ऐसा प्रेम रखा कि उसने अपना एकलौता पुत्र थे दिया ताकि जो उसपर विश्वास करे, वे कभी नास न हो वरन अनन्त जीवन पाए।
ऐसा प्रेम न कहीं देखा और न सुना जैसा पिता परमेश्वर ने जगत से किया ऐसे ही प्रेम के विषय यहां हमें सिखाया जा रहा है।
पौलुस यहां कहते हैं ...
यदि मैं मनुष्यों, और सवर्गदूतों की बोलियां बोलूं, और प्रेम न रखूं, तो मैं ठनठनाता हुआ पीतल, और झंझनाती हुई झांझ हूं। (1 कुरिन्थियों 13:1) अर्थात जो है, पितल जो आवाज करती है या झांझ जो आवाज करती बजने पर भितर से वह खोखली होती है, तभी वह आवाज करती है, ऐसे ही मनुष्य कि तुलना यहां हमें दे रहें हैं, कि बिना प्रेम मनुष्य खोखला ही होता है। जो बातें तो बड़ी-बड़ी करें परन्तु मित्र प्रेम न रखें तो उसका कोई फायदा नहीं। आगे कहते हैं
" और यदि मैं भविष्यद्वाणी कर सकूं, और सब भेदों और सब प्रकार के ज्ञान को समझूं, और मुझे यहां तक पूरा विश्वास हो, कि मैं पहाड़ों को हटा दूं, परन्तु प्रेम न रखूं, तो मैं कुछ भी नहीं। "(1 कुरिन्थियों 13:2) यहां वे हमें इस प्रकार समझाते हैं कि भविष्यवाणी का ज्ञान गुप्त भेदों को प्रकट करने का ज्ञान तब तक व्यर्थ है जब तक प्रेम न हो। प्रेम को यहां समझें कि बाइबल मानवता की प्रेम को इन सबसे बड़कर हमें सिखाती है।
ऐसी भविष्यवाणीयां ऐसा चमत्कार जो बड़े-बडे़ चिन्ह और चमत्कार दिखाए बिना प्रेम के सब व्यर्थ है । क्योंकि बिना प्रेम के यह सब बना नहीं रह सकता, प्रेम के विषय वे आगे बताते हैं कि प्रेम न रखने से कुछ भी लाभ नहीं। प्रेम चरित्र को बदलता है, स्वभाव को बदलता है। क्योंकि प्रेम परमेश्वर के स्वभाव को प्रकट करता है, क्योंकि प्रभु यीशु केवल चिन्ह और चमत्कार ही नहीं करते थें वरन उससे भी ऊतम सबसे प्रेम रखते थे। जो मनुष्यों को आत्मिक चंगाई भी प्रदान करता था। जैसे आगे पौलुस फिर समझाते हैं
"प्रेम धीरजवन्त है, और कृपाल है; प्रेम डाह नहीं करता; प्रेम अपनी बड़ाई नहीं करता, और फूलता नहीं। 1 कुरिन्थियों 13:4) वह अनरीति नहीं चलता, वह अपनी भलाई नहीं चाहता, झुंझलाता नहीं, बुरा नहीं मानता। (1 कुरिन्थियों 13:5) पहले हम यहां यह समझेंगे कि क्या - क्या गुणवत्ता दर्शाई गयी है प्रेम के विषय में - प्रेम बुरा नहीं मानता , वह डाह नहीं करता मतलब हर बात प्रेम पुर्वक सह लेता है। झगड़ा नहीं करता, प्रेम हर बात में धिरज धरता है। कोई किसी बात की उतावली या जल्दी नहीं करता, और सबसे उत्तम कृपा करने कि भावना भी प्रेम से ही उत्पन्न होती है। यह सब हमें परमेश्वर की समानता कि स्वभाव दर्शाती है, जो कि केवल और केवल प्रेम से ही उत्पन्न होता है।
इसलिए यहां प्रेम को सबसे उत्तम वह सरल मार्ग बताया गया है, जो हमें भी सबसे प्रकट कर अपने हृदयों में रखना चाहिए और आगे पौलुस कहते हैं
कुकर्म से आनन्दित नहीं होता, परन्तु सत्य से आनन्दित होता है। 1 कुरिन्थियों 13:6) यह भी सच है जो प्रेम रखता है वह कुकर्म नहीं करेगा अपने हृदय में किसी प्रकार का झुठ नहीं रखेगा, केवल सत्य से ही प्रेम करेगा। और आगे वे कहते हैं कि
वह सब बातें सह लेता है, सब बातों की प्रतीति करता है, सब बातों की आशा रखता है, सब बातों में धीरज धरता है। 1 कुरिन्थियों 13:7) यहां भी स्पट होता है प्रेम जिस मनुष्य में है वे स्वभाव से ही धिरजवन्त होगा, हर अनदेखी वस्तु कि वह आशा भी रखेगा। और जो प्रेम नहीं रखते उनके स्वभाव में झगड़ा, उतावलापन होता है और वे दया रहित होते हैं, और ऐसे स्वभाव से फिर बुराई और पाप उत्पन्न होता है। तो बुराई से फिर प्रभु का स्वभाव कभी प्रकट नहीं होता। न ही प्रभु का काम किया जा सकता है तो यह तो स्वभाविक है कि प्रेम ही इन में सबसे उत्तम मार्ग हुआ। यहां इन्हीं बातों का वर्णन किया जा रहा है सबसे अधिक। आगे वे कहते हैं कि
प्रेम कभी टलता नहीं; भविष्यद्वाणियां हों, तो समाप्त हो जाएंगी, भाषाएं हो तो जाती रहेंगी; ज्ञान हो, तो मिट जाएगा। 1 कुरिन्थियों 13:8) क्योंकि हमारा ज्ञान अधूरा है, और हमारी भविष्यद्वाणी अधूरी। 1 कुरिन्थियों 13:9) यह सत्य है कि यह दान और ये वरदान प्रभु ने ही हमें दिए हैं, प्रभु जब चाहे यह समाप्त कर सकता है यदि हम में प्रेम न बना रहे। यह समय के साथ-साथ उसी समय समाप्त हो जाएगा। परन्तु ह्रदय का प्रेम स्वभाव में आत्मा में बना रहेगा और अधिक बढ़ेगा यदि हम अपने भितर प्रेम को प्रथम स्थान देंगे। प्रेम वह मार्ग है जो हम में ओर प्रभु के स्वभाव में बढ़ाता है तथा हमें परमेश्वर कि समानता तथा स्वरुप में ओर निखारता है, जो प्रभु को भाता भी है। यहां पर इस अध्याय में संत पौलुस ने प्रेम कि सभी महत्वपूर्ण बातें बताई जो हम में आज होना आवश्यक है।
यदि आवश्यक नहीं होती तो यहां इसका वर्णन भी नहीं किया जाता इसलिए हमें इसके विषय जानना आवश्यक है। मेरे प्रियों यह स्वभाविक है जब प्रेम होगा तो चिन्ह चमत्कार होते रहेंगे, क्योंकि प्रेम चरित्र को निखारता है; स्वभाव को परमेश्वर की तरह बनाता है। तो जब प्रेम होगा तो अधुरा जो भी हो वह मिट जाएगा। और जब अधुरा ही मिट गया तो एक सिद्ध मसीहत खुद बा खुद प्रकट हो जाएगा। इसलिए यहां सबसे बढ़कर प्रेम को ही स्थान दिया गया है।
जैसे कि स्पष्ट है कि प्रेम झगड़ालू नहीं है, डाह नहीं करता अपनी बड़ाई नहीं करता; कृपा करता है। तो इन सब बातों से यह प्रतित होता है कि कैसा मनुष्य होगा वे जो प्रेम रखता होगा। यह स्वभाविक है कि जो प्रेम रखेगा वह स्वयम परमेश्वर कि समानता में जिएगा। जो खुद बा खुद परमेश्वर कि सामर्थीए कार्यो को करने का योग्य भी बन जाएगा। और जिसमें प्रेम नहीं केवल अपनी बड़ाई है, वे केवल झनझनाती हूयी झांझ कि तरह खोखला है। उसका स्वभाव परमेश्वर के स्वभाव में बने नहीं रहने देता, तो फिर कैसे दान वरदान में बने रहेंगे। वे अधूरा ही समाप्त हो जाएगा। परन्तु मेरे प्रियो जब प्रेम का स्वभाव परमेश्वर का ही स्वभाव है जब वह आएगा तो सब आधा अधुरा मिट जाएगा। सबकुछ सम्पूर्ण हो जाएगा, जैसे आगे लिखा भी है...
परन्तु जब सवर्सिद्ध आएगा, तो अधूरा मिट जाएगा। ( 1 कुरिन्थियों 13:10) यहां सर्वसिद्ध परमेश्वर के प्रेम को दर्शाता है, कि प्रभु ही प्रेम है। जब प्रभु का प्रेम हमारे अन्दर आ जाएगा तो सबकुछ अधुरा मिट जाएगा। जो भी हम में कमिया हैं, वे परमेश्वर के सिद्ध प्रेम के बाद समाप्त होते जाएगी। प्रेम हि सबसे उत्तम मार्ग है जो मनुष्य के सम्पूर्ण जीवन को निखारता है, और जब व्यक्तित्व हि निखर जाए तो परमेश्वर खुद बा खुद प्रकट होने लगता है। जब परमेश्वर प्रकट होगा तो एक सच्ची मसीहत भी प्रकट होगा। यही आज हमारे लिए सिखना आवश्यक है। मेरे प्रियों जब आप में प्रेम होगा तो अपने स्वभाव में कृपा भी आप रखेंगे और दया भी रखेगें, जैसा परमेश्वर रखता था। और जब दया और नम्रता का और कृपा का प्रेम का स्वभाव होगा तो परमेश्वर के दान वरदान भी प्रकट होने शुरू हो जाएंगे।
तो पौलुस आज कलिशिया को यही शिखा रहें हैं कि प्रेम ही सबसे उत्तम वह मार्ग है जो सब भविष्यवाणियों से, सब बोलियों से, सब प्रकार के ज्ञान से बढ़कर है। सब प्रकार का ज्ञान व्यर्थ है बिना प्रेम रखें। इसलिए वे कहते हैं - 1 कुरिन्थियों 14:1 में "प्रेम का अनुसरण करो, और आत्मिक वरदानों की भी धुन में रहो।" आत्मिक वरदान ही है प्रेम के साथ भविष्यवाणी की ज्ञान, चिन्ह चमत्कार सब प्राप्त हो जाएगा।
जरा आप सोचें कि जब आपके भीतर प्रेम होगा तो आप दूसरों के विषय में कृपा का स्वभाव रखेगें, दया का स्वभाव रखेगें तथा उनके लिए आत्म से भरकर आहें भर कर प्रार्थना भी करेगें जो पवित्र आत्मा कि गहरी उपस्थिति से आप को मिलेगा। उनकी पिडा़ में उनकी दर्द की सुधि भी आप रखेगें। यह सब प्रेम से ही उत्पन्न होगा। और यही सब परमेश्वर को भी भाता है। इसलिए आज प्रभु हमें प्रेम के विषय शिखाते हैं, जो सबसे उत्तम तथा सरल मार्ग है; परमेश्वर को प्राप्त करने का, दान वरदानों से भविष्यवाणियों से भी बढ़कर। इसलिए अपने भीतर प्रेम रखें , डाह नहीं और घमंड नहीं केवल प्रेम का ही अनुकरण करे।
सबसे बढ़कर तो आपको सब वस्तुएं प्राप्त होते जाएंगे, विश्वास से भी बढ़कर यहां प्रेम को स्थान दिया गया है। जो हमें परमेश्वर से तथा पूर्ण मानव जाति से रखना है। जैसा हमारे प्रभु यीशु मसीह ने भी हमसे किया । प्रेम ही वह सबसे सरल और उत्तम मार्ग है जो हमें प्रभु के और निकट पहुंचाने में हमारी सहायता करता है। न तो बोलिया, ना तो भविष्यवाणीयां, और न ही ज्ञान कुछ भी हमें प्रभु के निकट पहुंचा सकता, यह सब आधा अधुरा है। बिना सर्वयापी प्रेम के और ऐ सब अधुरा पुरा हो जाएगा , जब सर्वसिद्ध प्रेम हम में आ जाए, क्योंकि बाइबल बताती है और हमें पता भी है कि परमेश्वर ही प्रेम है और प्रेम ही परमेश्वर है।
तो फिर सबसे उत्तम फिर क्या हुआ ? केवल और केवल प्रेम ही। यही है वह उतम मार्ग जो आज प्रभु हमें सिखाते हैं। उस तक पहुंचने के लिए हमें सब बातों से बढ़कर, सब वरदानों से बढ़कर प्रेम का अनुकरण करना है। जो आज के समय में लगभग समाप्त सा होता जा रहा है, तो हमें अपने भीतर से प्रेम समाप्त नहीं करना वरन केवल उसे ही प्रथम स्थान देना है। तभी हम परमेश्वर की समानता तथा समानता रूप में निखरते जाएंगे, जो परमेश्वर को भाता भी है।
तो प्रियो, अपने-अपने हृदय को उस ईश्वरीय प्रेम के अनुकरण से भरें तथा एक दूसरे से प्रेम करें और सब पर प्रेम से भरकर दया और कृपा रखें। जैसा हमारा परमेश्वर प्रभु यीशु भी सब पर प्रेम के साथ दया करता था। इसलिए आज परमेश्वर ने हमारे स्वभाव में भविष्यवाणीयों से और बोलियों से बढ़कर हमें प्रेम को रखने को सिखाया है। क्योंकि प्रेम ही सबसे उत्तम मार्ग है परमेश्वर तक पहुंचने का और हमें भी आज अपने स्वभाव में प्रेम को सबसे प्रर्थम स्थान देना है।
परमेश्वर आपको इन वचनों के द्वारा आशीष दे। अगर आप चाहते हैं कि दूसरे भी इस लेख के द्वारा आशीष पाएं तो इस लेख को शेयर करें।
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