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विश्वास क्या है - विश्वास को कैसे प्राप्त कर सकते हैं | Bible Verse About Faith In God

विश्वास क्या है - विश्वास को कैसे प्राप्त कर सकते हैं | Bible Verse About Faith In God 

विश्वास क्या है - विश्वास को कैसे प्राप्त कर सकते हैं | Bible Verse About Faith In God


बहुत से धर्म शास्त्र इन अध्ययनों में दिए गए हैं। पढ़ने वालों से निवेदन है कि वे धर्म शिक्षा को भली-भांति समझने के लिए प्रत्येक पद को अवश्य देखें। यह हमें परमेश्वर के वचन में दिए गए हैं।


इस लेख के द्वारा हमारा लक्ष्य है की सरल व स्पष्ट रूप से कुछ महान सत्यों को सीखे सकें।पतरस इनकी व्याख्या करता है कि हम निर्मल आत्मिक दूध की लालसा करें। यह हमारे मसीह जीवन में बढ़ने के लिए अति आवश्यक है ( पतरस 2:2) ।


हमारा पवित्र आत्मा के अद्भुत कार्य और परमेश्वर के द्वारा उसके परिवार में जन्म हुआ है (यूहन्ना 3:3)। यह हमारे स्वर्गीय पिता की इच्छा है कि हम सत्य के असीम धन के ज्ञान में बढ़ते जाएं। हमारा इन सत्य के साथ परिचय कराया गया है। वह चाहता है कि हम बालकों से जवान बनते जाएं, फिर जवान पुरुषों से पिता बनते जाएं (1 यूहन्ना 2:14 )


पविशास्त्र में इन सत्यों को दूध और अन्न की संज्ञा के रूप में दर्शाए गए हैं। हमें बताया गया है कि " अन्न उन लोगों के लिए है जो सयाने हैं " (इब्रानियों 5:14)। परंतु इस अध्ययन में हम बालकों के विषय में ध्यान देंगे। प्रत्येक पढ़ने वालें हरेक भाग को ध्यानपूर्वक व प्रार्थना सहित पढ़ें।


प्रारंभ में हम विश्वास के महान विषय पर ध्यान देंगे। अनुग्रह से उस छुटकारे के द्वारा जो मसीह यीशु में है सेंतमेंत से धर्मी ठहराए जाते हैं। उसे परमेश्वर ने उसके लहू के कारण एक ऐसा प्रायश्चित ठहराया जो विश्वास करने से कार्यकारी होता है। (रोमियो 3:24-25)

" परंतु जो काम नहीं करता वरन् भक्तिहीन के धर्मी ठहराने वाले पर विश्वास करता है, उसका विश्वास उसके लिए धार्मिकता गिना जाता है " (रोमियो 4:5)। सो जब हम विश्वास करने से धर्मी ठरते तो अपने प्रभु यीशु मसीह के द्वारा परमेश्वर के साथ मेल रखें ( रोमियो (5:1)। अनुग्रह से ही विश्वास के द्वारा तुम्हारा उद्धार हुआ है ( इफिसियों 2:8)। विश्वास के बिना उसे (परमेश्वर) को प्रसन्न करना अनहोना है ( इब्रानियों 11:6)


ये भाग नए नियम से चुने गए हैं। यह विश्वास की महान आवश्यकता पर बल देते हैं। अंतिम पद से ज्ञात होता है कि परमेश्वर को प्रसन्न करने के लिए हमारे पास विश्वास होना चाहिए। इसके बिना और कोई दूसरा साधन नहीं है। विश्वास परमेश्वर को जानने के लिए सकारात्मक रूप से अति आवश्यक है।


यदि विश्वास इतना महत्वपूर्ण है, तो विश्वास क्या है यह स्पष्ट रूप से जान लेना अनिवार्य है। विश्वास को कैसे प्राप्त कर सकते हैं ?


1. विश्वास क्या नहीं है ?

  1. यह केवल स्वीकृति या सहमति नहीं है हम सत्य के साथ सहमत हो सकते हैं परंतु हम उस पर कार्यशील नहीं होते उदाहरण अग्रिपा ( प्रेरितों के काम 26:27,32)
  2. यह कोई भ्रम नहीं है। "भ्रम" अनजानी व रहस्यमय वस्तु के रूप प्रति अधिक भय रहना है ।
  3. यह सहज विश्वास नहीं है, सहज विश्वास का अर्थ है " किसी भी बात पर सहजता से विश्वास करना। "


2. विश्वास क्या है ?

इब्रानियों 11:1 विश्वास आशा की हुई वस्तुओं का निश्चय और अनदेखी वस्तुओं का प्रमाण है। इसमें तीन तत्व पाए जाते हैं-

  1. ज्ञान - हमें जानना चाहिए इसलिए परमेश्वर हमें तथ्य देता है।
  2. इन तत्वों पर स्वीकृति - हमें उन पर विश्वास करना चाहिए।
  3. इन तत्वों पर भरोसा करना और उस व्यक्ति पर जो इनमें प्रकट होता है।


ख्रिस्त-परमेश्वर का पुत्र है 

संभवत: प्रथम दो हमें हो। किंतु यदि हम जीवित ख्रिस्त यीशु पर और केवल उसी पर भरोसा रखने में असफल होते हैं। तो हमारा उद्धार नहीं है। पतरस की पानी पर चलने की घटना को ही ले लें। उसको ज्ञान था कि जिसने उससे चलने को कहा, वह परमेश्वर का पुत्र है।


द्वितीय बात- उसको विश्वास था कि वह तूफानी लहरों में भी उसे संभाल सकता है।

तृतीय बात- उसको विश्वास था तभी वह उस छोटी नाव से उतरा और वास्तव में पानी पर चला

अन्य रोचक उदाहरण अब्राहम का है जो ( उत्पत्ति 15:6) में पाया जाता है। एक अन्य उदाहरण पौलुस की रूम की यात्रा का अनुभव है। ( प्रेरितों के काम 27:21,25)


3. विश्वास कैसे प्राप्त करें ?

हम अपने जीवन में प्रतिदिन कई वस्तुओं व व्यक्तियों पर विश्वास हुआ भरोसा रखने का प्रयोग करते हैं। किंतु प्रश्न उठता है कि कैसे एक व्यक्ति प्रभु मसीह ख्रिस्त पर उद्धार के लिए विश्वास कर सकता है ( रोमियो 10:17)।

इसका उत्तर देता है- " विश्वास सुनने से और सुनना मसीह के वचन से " इस प्रकार का सुनना आत्मिक कानों के द्वारा होता है। (अन्यथा बहिरा व्यक्ति उधार ना पाता )


यह परमेश्वर के द्वारा दी गई गवाही को सुनने की तत्परता है। वह गवाही परमेश्वर के वचन द्वारा हम तक पहुंचती है। यह किसी पर्चे, पुस्तक, वचन के सुनने या बाइबल के व्यक्तिगत पढ़ने के द्वारा पहुंच सकती है। इसका उदाहरण इब्रानियों 11:7 में मिलता है।


4. इसका मुख्य विषय क्या है ?

हम अल्प विश्वास ( मत्ती 14:31), " महान विश्वास " (मत्ती 8:11) और " दृढ़ विश्वास "  ( रोमियों 4:20 ) में पढ़ते हैं। यह अति चाहने योग्य है कि हमारा विश्वास भी इब्राहिम की भांति हो। ( रोमियो 4:18-22 )। 


तथापि हमारे विश्वास का मुख्य विषय अति महत्वपूर्ण है। विश्वस्त औषधि पर दुर्बल विश्वास करना आयोग औषधि पर दृढ़ विश्वास करने से भी से अधिक बहुमूल्य है। आत्मा के उद्वार के लिए प्रभु यीशु पर विश्वास का मुख्य विषय है  ( प्रेरितों के 20:21, कुलुस्सियों 1:4 )।



यदि हमारा भरोसा पूर्णत: संपूर्ण रुप से प्रभु पर हो, तो संभवत: हम परमेश्वर के द्वारा पूर्ण रूप से सुरक्षित हैं। यह केवल नूह का विश्वास ही नहीं जिसने उसको और उसके परिवार को सुरक्षित रखा परंतु वह जहाज था। किसी प्रकार से उसका विश्वास परमेश्वर की आज्ञानुसार जहाज में प्रवेश करने से दृढ़ हुआ।


5. इसके क्या प्रतिफल हैं ?

बाइबिल में विश्वास के कई प्रतिफल दिए हैं। उनमें से हम कुछ पर ध्यान करेंगे। केवल उन्हीं को जो परमेश्वर के मनुष्य के प्रति कुछ प्रतिफल दर्शाते हैं।

(क) परमेश्वर के प्रति:-

वह इससे प्रसन्न होता है। इब्रानियों 11:5.6 क्यों ? क्योंकि वह उसके वचन के प्रति साधारण भरोसे से उत्पन्न होता है।


(ख) मनुष्य के प्रति:-

  1. विश्वास पापी को बचाता है और धर्मी ठहरता  है ( इफिसियों 2:8,9  प्रेरितों 26:18)।
  2. यह वह मार्ग है जिस पर विश्वासी को चलना चाहिए ( 2 कुरि, 5:17) ( इब्रानियों 11 अन्याय )।


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