मसीह जीवन के लिए पांच महत्वपूर्ण आदतें / Five important point for christian life - Bible Verse
एक मसीह के जीवन में कुछ आदतें होना महत्वपूर्ण हैं, जिनमें से यहां कुछ जरूरी बातों के बिषय में आप से चर्चा करूंगी।
जिनमें से सबसे महत्वपूर्ण और प्रथम आदत जो हम मसीहयों में होना आवश्यक है, वह है " प्रार्थना "
जी हां, दोस्तों ! प्रार्थना ही सबसे महत्वपूर्ण और जरूरी आदत है, हम मसीहीयों में जो हमारे जीवन में होना अनिवार्य है। प्रार्थना के बिना हम मसीहीयों का जीवन व्यर्थ है, स्वरप्रथम अपना प्रार्थना जीवन मजबूत करना चाहिए। हर परिस्थितियों में हर घड़ी, हर संकट में हमें कभी भी प्रार्थना करना नहीं छोड़ना चाहिए, चाहे कितनी भी व्यस्ता क्यों न हो हमारे जीवनों में फिर भी हमें समय निकाल कर रोज प्रार्थना करनी चाहिए; अपने लिए भी और अपने लोगों के लिए भी।
जब हम बाइबल को ध्यान से पढ़ते हैं, तो देखते हैं कि प्रभु यीशु मसीह भी पिता परमेश्वर से निरन्तर प्रार्थना किया करते थे। एकान्त में पहाड़ पर जा कर पुरी-पुरी रात वे प्रार्थना किया करते थें, और फिर उसके पश्चात अपनी सेवकाई किया करते थें। जैसे- बिमारों को चंगा करना, दुष्ट आत्माओं को निकालना, प्रचार करना, परमेश्वर का वचन बांटना, इस तरह वे अपनी सेवकाई करते थें और स्वरप्रथम प्रार्थना किया करते थें, और प्रार्थना के पश्चात एक सामर्थ्य से भरा जीवन उन पर ठहरा रहता था।
तो दोस्तों, हमें भी अपने परमेश्वर से हर परिस्थिति में प्रार्थना करना चाहिए। प्रार्थना ही एक मात्र जरिया है; हमें हमारी सृष्टि कर्ता से जोड़ने का, प्रार्थना हमारी आत्मिक जीवन की उन्नति के लिए आवश्यक है। और प्रार्थना ही हमें परमेश्वर की योजनाओं को उसकी इच्छाओं को जानने में, हमारी सहायता करता है। जब हमारा जीवन प्रार्थना जीवन बना रहता है, तो हम सदा आत्मिक उन्माद से भरे रहते हैं अर्थात शान्ती से, आनंद से और अपने जीवन की सही दिशा की ओर हम बढ़ते जाते हैं।
क्योंकि प्रार्थना ही हमें अपने सृजनहार से जोड़ी रहती है, और जब हम प्रार्थना के जरिए से अपने परमेश्वर से जुड़े रहेंगे, उससे निरन्तर संबंध में बने रहेंगे तो स्वाभाविक ही है मेरे दोस्तों की हम आनंद और सच्ची शांति में बने रहेंगे। तो इसलिए मसीह जीवन में सबसे महत्वपूर्ण है प्रार्थना निरन्तर करते रहना।
और दूसरी महत्वपूर्ण बात वह आदत जो हम मसीहयों में होना आवश्यक है ; वह है " विश्वास"
हां, दोस्तों! परमेश्वर पर विश्वास करना उसके वचनों पर पुनःत विश्वास रखना हम मसीहीयों की आदत में होना आवश्यक है। कभी-कभी हमारे जीवनों में बहुत सी ऐसी परिस्थितियां आती हैं जिससे हमारा विश्वास डगमगाने लगता है। उस घड़ी हम अल्पविश्वासी या अविश्वासी होने लगते हैं, जो कि यह एक ग़लत विचार धारा है। ऐसा बिलकूल नहीं होना चाहिए, हमें अपने परमेश्वर पर हर परिस्थिति में, हर उतार-चढा़व में अपना विश्वास नहीं खोना चाहिए, वरन् उसे थामें रखना चाहिए।
वह परमेश्वर जो सृष्टि कर्ता है; जब वह हमारे साथ है तो फिर डर कैसा ? कई बार मनुष्य की भावनाएं डगमगा जाती है परिस्थितियों को देख कर, पर विश्वास को आप थामें रहें। उसे कभी न छोड़ें, कभी डगमगाने न दे, जब हमनें जान ही लिया है की यीशु ही प्रभु है और वह हमारे पापों के लिए मारा गया, गाड़ा गया और तीसरे दिन जी उठा और वह आज भी हमारे साथ है जब ऐसा विचार विश्वास हमारे हृदय में है तो फिर अविश्वासी होने का तो सवाल नहीं उठता।
विश्वास ही मसीह जीवन की ऐसी नीव है जो हमें परमेश्वर के निकट आने में सहायता करता है। यह विश्वास ही हमें परमेश्वर के राज्य में फलवंत बनाता है और हमारे आत्मिक जीवन को मजबूत करता है, तो विश्वास हर मसीह में होना आवश्यक है।
और तीसरी महत्वपूर्ण बात जो हम मसीहयों में होना आवश्यक है; वह है " वचन पर मनन करना"
जी हां, दोस्तों! परमेश्वर की जीवित और सच्चे वचन पर मनन करना हम मसीहीयों की आदत होनी चाहिए। जब भी आप बाइबल को पढ़ें तो केवल उसे एक धार्मिक पुस्तक जान कर ही न पढ़ें, वरन् यह ध्यान में रखकर पढ़ें की यही परमेश्वर का वादा है आप के जीवन के लिए। उसके एक-एक वचन को सदा अपने हृदय में मनन करें, और उसको मुख से अंगिकार भी करें। परमेश्वर का वचन जीवीत और दोधारी तलवार है, जो मांस - मांस को और गूंदे - गूंदे को आर - पार छेदता है, और आत्मिक जीवन की भी रक्षा करता है। जैसे - शरीर रोटि के बिना अधूरा है वैसे ही आत्मा परमेश्वर के वचन के बिना अधूरी है, परमेश्वर की वचन के बिना वह भुखी और प्यासी है।
परमेश्वर का वचन ही आत्मा की रोटि है, जिसे हमें सदा पढ़ना है और चबा - चबा कर खाना भी है, जिससे हमारी आत्मा भुखी न रहे। परमेश्वर के वचन को सदा अपने जीवन में लागू करें, उसे ध्यान से पढ़ें क्योंकि वही हमें अन्धकार से निकालकर ज्योति में लाता है। जैसा बाइबल में लिखा भी है कि " तेरा वचन मेरे पांव के लिए ज्योति और मार्ग के लिए उज्याला है" भजन संहिता 119:105
जी हां, परमेश्वर के वचन को मनन करते रहने से हमारे सभी अन्धयारे मिट जाते हैं और सदा हम परमेश्वर की ज्योति में बने रहते हैं। इसलिए परमेश्वर के वचन पर सदा अपना चित लगाये रहें, और उसे अपना हृदय में स्थान दें। हर परिस्थिति में हर संकट में परमेश्वर का वचन बोलें उसे स्मरण रखें, एक बार पढ़कर उसे न छोड़ें उसपर सदा मनन करते रहें यही एक मसीह की आदत होनी चाहिए।
जब आप बाइबल का अधिक अध्ययन करेंगे तो खुद बा खुद वचन आपके विवेक में आपके हृदय में आपके मन में स्थान बनाता जाएगा। इसलिए सब कामों से अधिक परमेश्वर के वचन का अध्ययन करें, और सदा उसपर मनन करें।
चौथी महत्वपूर्ण बात जो हम मसीहीयों में होना चाहिए; वह है " परमेश्वर की आज्ञा का पालन करना"
जी, हां दोस्तों! हम मसीहीयों के जीवन में परमेश्वर की आज्ञा को ही मानना आवश्यक है, अन्य किसी की नहीं किसी की अर्थात संसारी लोप ललसाओं से भरी और मनुष्यों की बातों में हमें नहीं फंसना। जो परमेश्वर बाइबल के आधार पर हमें सिखाता है उसे ही हमें मानना है उसका ही हमें पालन कराना है। वैसे तो संसार में बहुत से रिश्ते हैं, बहुत सी लालसाएं है, बहुत सी बुराईयां हैं, बहुत सी प्रथाएं हैं पर हमें उन में से किसी पर भी ध्यान नहीं देना।
केवल और केवल परमेश्वर के आज्ञाओं का पालन करना है। अपने जीवन के हर पहलू में चाहे वह फिर शादी करना हो, घर खरीदना हो, व्यापार करना हो जैसे कोई भी फैसलें हो सभी में हमें परमेश्वर की आज्ञा को स्वरप्रथम जानना है, और फिर उनका पालन करना है। जैसे बाइबल दर्शाती है भजन संहिता में " यहोवा को अपने सुख का मूल जान, और वह तेरे मनोरथों को पुरा करेगा।" भजन संहिता 37:4 मूल जान अर्थात परमेश्वर को ही अपने जीवन का आधार जान।
जब हम परमेश्वर के आज्ञाओं पर चलते हैं तो ही हम आशीषीत होते हैं, क्योंकि आज्ञा - कारीता में ही आशीष छिपी हुई है। परमेश्वर की आज्ञा मानना हम मसीहीयों के जीवन का आधार होना चाहिए,परमेश्वर की आज्ञाओं को केवल सुनने वाले नहीं, वरन् उस पर चलने वाले हमें होना चाहिए, आज्ञा पालन से परमेश्वर प्रसन्न रहता है।
हमारे मसीह होने का अस्तित्व ही नहीं रह जाता यदि हम परमेश्वर की आज्ञाओं पर ही नहीं चलें, और अपनी मर्जी करते रहें। जीवन का हर फैसला अपनी बुद्धि से करें तो हम सिद्ध और फलवंत मसीह कभी नहीं बन पाएंगे। इसके लिए हमें परमेश्वर की आज्ञा का पालन करना आवश्यक है। हर विषय में परमेश्वर की आज्ञा को समझें और उसे पुरा करें।
अगली और आख़री बात जो हम मसीहीयों में होना आवश्यक है; वह है " दशमाशं" भेंट देना
जी, हां दोस्तों! हमें परमेश्वर के आज्ञा के अनुसार दशमाशं देना आवश्यक है, ऐसा कर के हम अपने आर्थिक जीवन में एक उन्नति को देखते हैं। यदि परमेश्वर ने हमें योग्य बनाया है तो हमें किसी दूसरे की भी आर्थिक मदद करनी चाहिए, यह भलाई का कार्य है। जिससे परमेश्वर सदा प्रसन्न होता है, क्योंकि जो कुछ भी हमारे पास है वह उसी का दिया हुआ है। तो जब हम उसी में से दशमाशं भेंट देते हैं तो वह और भी भरपूरी हमें देता है। ऐसा कर के हम परमेश्वर कुछ नहीं देतें क्योंकि उसे इसकी आवश्यकता नहीं है, ऐसा कर के हम अपने अन्दर बांटने की, देने की भावना को पैदा करतें हैं जो हमें एक सिद्ध मसीह होने में हमारी सहायता करता है।
तथा दशमाशं बोकर उत्तम राज्य में अपनी सहभागिता देते हैं। क्योंकि परमेश्वर के राज्य में बोना एक उत्तम सहभागिता है, जो भी आप को परमेश्वर का वचन सुनाते हैं उनकी स्वर्गीय ज्ञान कि शिक्षा आपको देते हैं। आप के लिए निरंतर दिन और रात प्राथनाएं करते हैं उस राज्य में दशमाशं और भेंट देना एक उत्तम सहभागिता ही है, जिससे आप परमेश्वर के इन उत्तम कार्यों के सहभागी बनते हैं जो परमेश्वर को भाता भी है।
जब भी आप दशमाशं या भेंट दें तो बिना कुढ़कुढा़ए बिना किसी दबाव के अपनी इच्छा से अपनी योग्यता के अनुसार ही दें, क्योंकि उसका कोई लाभ नहीं जो कुढ़कुढा़ए दिया जाए। परमेश्वर के राज्य में सदा हर्ष और आनंद से बोना चाहिए, दशमाशं देना और भेंट देना भलाई करना ज़रुरत मंदों की मदद करना, हम मसीहीयों की आदत में निरंतर सामिल होना चाहिए, यह आपके भीतर सच्चे परमेश्वर की गुणवत्ता को प्रकट करता है।
तो दोस्तों, यह पांच आदतें हम सभी मसीहीयों के जीवन में होना आवश्यक है। वैसै तो और बहुत सी आदतें हैं जो हमें अपने जीवनों में लानी है पर अभी यहीं आपके और मेरे लिए अति आवश्यक है।
तो आइए जांचें अपने आप को क्या यह सब बातें हमारे जीवन में हैं या नहीं ? और यदि इनमें कुछ-कुछ अभी हमारे जीवनों में नहीं हैं तो आज ही से हमें इन्हें अपने जीवनों में लागू करना है और प्रार्थना करना है। जिससे हम परमेश्वर के राज्य के सिद्ध और फलवंत मसीह बन पाएं और दूसरों के लिए आशीष का कारण भी।
परमेश्वर आपको इन वचनों के द्वारा आशीष दे।
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