दो स्वभाव /Old Nature and New Nature
हमारे मसीह जीवन में थोड़ी ही प्रगति होगी ? यदि हम प्रत्येक विश्वासी के भीतर दो स्वभाओं को पहचानने में असफल होते हैं। ये स्वभाव 2 दो भिन्न जन्म का प्रतिफल है। पुराना स्वभाव जिसे शरीर कहते हैं- यह प्रथम जन्म से पाया जाता है। नया स्वभाव से आत्मा कहते हैं- यह दूसरे जन्म से पाया जाता है। हमारा नया जन्म प्रभु ने भरपुरी से निकुदेमुस को अपने शब्दों से स्पष्ट किया, जो आत्मा से जन्मा वह आत्मा है ( योहन्ना 3:6)।
पवित्र शास्त्र 'शरीर' शब्द के दो रूप में प्रयोग करता है। पहला वह हमारी देह को दर्शाता है। उदाहरण के लिए वह जो शरीर में प्रकट हुआ ( 1 तिमुथियुथस 3:16 )। दूसरे पुराने स्वभाव को दर्शाता है प्रत्येक आदम के पुत्र में पाया जाता है। इसी को ध्यान में रखकर हम इसका अध्ययन करेंगे।
आइए दोनों सभाओं के अंतर में देखें-
शरीर आत्मा ( पवित्र आत्मा नहीं )
यूहन्ना 3:5 यूहन्ना 3:6
इफिसियों 4:22 इफिसियों 4:24
रोमियों 7:23 रोमियों 7:22
रोमियों 8:7,8 2 पतरस 1:4
इन दोनों के बीच निरंतर शत्रुता व विरोध बना रहता है क्योंकि शरीर आत्मा के विरोध में और आत्मा शरीर के विरोध में लालसा करती है? और ये एक दूसरे के विरोध में है। इसलिए जो तुम चाहते हो वह न कर पाओ ( गलतियों 5:17 )। बहुत से जवान विश्वासी परस्त जीवन व्यतीत करते हैं कि क्योंकि वे नहीं जानते हैं।
1.शरीर क्या है?
2.नवा जीवन क्या है ?
3.विजय मार्ग क्या है ?
1.शरीर क्या है?
यहां पर तीन असराहनीय किंतु सत्य तथ्य है- (क) यह असाध्य रूप से बुरा है, शब्द 'असाध्य, पर ध्यान दे। बाइबल आदम के स्वभाव की अपरिवर्तित बुराई पर विशेष बल देती है। विद्यार्थी इस शब्द इस समय सत्य को गहन रूप से समझ लें। " मन तो वस्तुओं से अधिक धोखा देने वाला होता है। उसमें असाध्य रोग लगा है"
( यिर्मयाह 17:9 )।
" क्योंकि भीतर के आदर्श मनुष्य के मन से बुरी बुरी चिंता, व्यभिचार, चोरी, हत्या, पर स्त्री गमन, लोभ, दुष्टता,छल, लुचपन, कुदृष्टि, निंदा,अभिमान, मूर्खता निकलती है।" ( मरकुस 7:21-23 ) " शरीर पर मन लगाना तो परमेश्वर से बैर रखना है जो शरीरिक दशा में है, वे परमेश्वर को प्रसन्न नहीं कर सकते हैं।" ( रोमियो 8:7,8 1 कुरि. 2:14 )। "शरीर से कुछ भी लाभ नहीं " ( यूहन्ना 6:63 )। जिसके उद्वारा नहीं पाया वह परमेश्वर की आज्ञा नहीं मान सकता न कि समझ सकता है ( रोमियो 8:7,8)। 1 कुरि 2:14।
(ख) यह मन परिवर्तन के समय नहीं बदलता है। पवित्र शास्त्र अनुभव दोनों इस बात की गवाही देते हैं। पौलुस कहता है, " मैं जानता हूं कि मेरे शरीर में कोई वस्तु अच्छी वस्तु वास नहीं करती" ( रोमियो 7:18 )।
(ग) इसमें परिवर्तन के समय सुधार नहीं आता है। यह हमेशा के लिए सत्य को जो शरीर से जन्म वह शरीर है। यह नये स्वभाव में परिवर्तित नहीं होता और न सुधरता हैं। सत्य तो यह है कि यह परिवर्तन के बाद अधिक बुरा हो जाता है। यह इसलिए कि परमेश्वर का प्रकाश भीतर समा गया है और उसकी ज्योति पूर्ण बुराई को प्रकट करती हैं।
इब्राहिम के श्रेष्ठ पुत्र इसहाक के उत्पन्न होने के समय इस्माइल 13 वर्ष की आयु का था। परंतु हम इसहाक के उत्पन्न होने के समय तक उसका किसी दुर्व्यवहार के विषय में नहीं पड़ते हैं। बाद में वह चिढ़ाने लगा। तब इसहाक का स्वभाव उसे परेशान देने लगा। आइये इस पर पुन: विचार करें, धर्म व सियाने मसीह के भीतर का शरीर ही अधर्मी मनुष्य के शरीर के समान है। तथापि उसका प्रकटीकरण एक भीन्न विषय है। हम स्वभाव की दुराचारता के विषय में बातचीत कर रहे हैं।
2. नया जन्म
जो कोई परमेश्वर से जन्मा है वह पाप नहीं करता क्योंकि उसका बीज उसमें बना रहता है, और वह पाप कर ही नहीं सकता क्योंकि परमेश्वर से जन्मा है ( 1 योहन्ना 3:9 )। नये जन्म की तीन चिन्ह पर ध्यान दें-
(क) यह परमेश्वर की ओर से है। यह शरीर पतित आदम से आया है। यह संपूर्ण रूप से बुरा है। इसके विपरीत नया स्वभाव परमेश्वर की ओर से संपूर्ण रूप से अच्छा है। इसके "दिव्य स्वभाव" कहते हैं ( 1 पतरस 1:4 )।
( ख ) यह पाप कर नहीं सकता ( 1 यूहन्ना 3:9 )। यूहन्ना 5:8 में लिखा है। इस कुछ विश्वासी लोगों की उपलब्धि नहीं कहते हैं। परंतु यह सभी के लिए सत्य हैं। इसका अर्थ यह नहीं कि कभी कोई विश्वास ही पाप नहीं करता देखें ( 1 यूहन्ना 2:1 )। परन्तु यह परमेश्वर की संतान की विशेषता को बताता है। कोई भी सच्चा विश्वास ही पाप नहीं करता रहता। परमेश्वर का भी बीज उसका अपना जीवन और स्वभाव है जो मसीही लोगों को दिया है। "अंजीर का वृक्ष जैतून का फल नहीं ला सकता और न दाखलता से अंजीर हो सकता।
"इसलिए नया जीवन संपूर्ण रीति से पाप के प्रति असंभव है। ( रोमियो 8:8,1 यूहन्ना 3:9 ) में कर नहीं सकता में भेद देखें।
( ग ) वह परमेश्वर की बातों से प्रसन्न होता। पौलुस पुकारता है भीतरी मनुष्यत्व के पीछे परमेश्वर की व्यवस्था से मैं आनंदित हुआ। आत्मा पर मन लगाना जीवन और शांति है। स्वभाविक रूप से इसका स्त्रोत प्रार्थना है ( प्रेरितों 9:11 ) भोजन के लिए उसका वचन ( 1 पतरस 2:2 )। अनुशासन के लिए उसकी सेवा ( 1 पतरस 2:9,10 ) वह भाइयों से प्रेम करता है। यह कुछ नव दिव्य जीवन के कुछ प्रकाशन है।
3. विजय का मार्ग
मसीहियों के दो मनुष्यत्व है - शारीरिक और आत्मिक देखें ( 1 कुरिन्थियों 3:1,4 इत्यादि ) मैं आत्मिक कैसे हो सकता हूं? मैं आत्मिक कैसे हो सकता हूं हम इसका उत्तर बाइबिल रूप से इस पाठ में और आनेवाले पाठ में देने का प्रयत्न करेंगे।
क्रूस पर परमेश्वर ने मेरे बाप को ही नहीं वरन उसने औरों के भी पापों को क्षमा किया। परमेश्वर ने पाप के कारण और उसके प्रति फलों का न्याय किया था। पाप के परिणाम रह जाते हैं। हमें पाप से घृणा करनी चाहिए। यहां सहायक पर तीन सहायत पद हैं।
(क) शरीर पर घमंड ना करें ( फिलिम 3:3 )। शरीर से पवित्रता उत्पन्न होने की आशा न रखें। यह एक कटीले पेड़ की जड़ है और इससे कांटे ही उत्पन्न होंगे।
(क) शरीर की अभिलाषा को पूरा करने का उपाय ना करो ( रोमियो 13:14 )।
(ग) आत्मा के द्वारा शरीर की क्रियाओं को मार डालो ( रोमियो 8:13 )। मारने का अर्थ है "नाश करना।" यहोवा ने इस्त्राइल को गिलगाल में कहा, " चमकना जी दारिया बनवा ( यहोशू 5:2 )। जब तक यह आज्ञा पूरी न हो तब तक कनान में विजय ना होती। तब गिलगाल जो आत्मा नया का स्थान था, इस्त्राइल की सेना का छावनी बना ( यहोशू 10:43 )।
यह पवित्र आत्मा के द्वारा ही औसत किया जा सकता है। अगले पाठ में हम इसकी सेवकाई और सामर्थ्य के विषय में पड़ेंगे।
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