प्रभु यीशु का न्याय सिंहासन Judgement Seat Of Christ - Click Bible

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प्रभु यीशु का न्याय सिंहासन Judgement Seat Of Christ

प्रभु यीशु का न्याय सिंहासन Judgement Seat Of Christ

प्रभु यीशु का न्याय सिंहासन Judgement Seat Of Christ

नये नियम में कम से कम चार न्यायों का वर्णन पाया जाता है। पढ़ने वालें बुद्धिमता से इन्हें पहिचान सकता है। वे इस प्रकार से है


(1) क्रूस पर पापियों के पाप का न्याय । 

(2) ख्रिस्त के न्याय आसन के सन्मुख विश्वासियों के कामों का न्याय । 

(3) जातियों का प्रभु के महिमा के आगमन के समय न्याय (मत्ती 25:31, 46)। 

(4) श्वेत सिंहासन के सन्मुख दुष्ट मृतकों का न्याय (प्रका. 20:11, 15)।


इनमें से प्रथम न्याय हो चुका है । परन्तु अन्य तीन भविष्य के न्याय हैं । द्वितीय न्याय संतों के स्वर्गारोहण के तुरन्त बाद होगा। तीसरा न्याय हजार वर्ष के राज्य के पूर्व होगा। अंतिम न्याय हजार वर्ष के पश्चात् होगा। किसी भी विश्वासी का न्याय श्वेत सिंहासन के सन्मुख नहीं होगा क्योंकि उसके समस्त पापों का न्याय यीशु ने क्रूस पर चुका दिया था। मसीही लोगों की सेवा को यीशु ख्रिस्त के न्याय आसन की प्रतीक्षा है। उस दिन प्रभु स्वयं प्रत्येक जीवन को पुनः देखेगा और प्रत्येक कारण का निरीक्षण करेगा। बेटा घर वापिस आ रहा है । वह उसे शीघ्र ही अपने हृदय से लगा लेगा। घटनायें नहीं वरन् व्यक्ति है जो उसका दिल भर ले आता है। उसके आगमन का अभिप्राय -


उसके आगमन के तीन अभिप्राय हैं - 

(1) अपने वचनों को पूरा करे 

(2) संतों को उठा ले जाने के लिए 

(3) पृथ्वी के अधिकार को प्राप्त करने के लिए


1. वचन को पूरा करने हेतु -


महायाजक के महल में शपथ से हमारे प्रभु ने दृढ़ता से कहा कि वह परमेश्वर का पुत्र है. इसके बाद वह सर्वशक्तिमान के दाहिने बैठेगा व स्वर्ग में बादलों पर पनः आयेगा (मत्ती 26 :64)। उसने इस विषय में बार-बार भविष्यवाणी की थी। पहला आने का अभिप्राय यह है कि, वह अपने वचन को पूरा करें। 


2. संतों को ले जाने हेतु -


इसको सामान्य रूप से कलीसिया का 'स्वर्ग रोहण' कहते हैं। यह स्वर्ग रोहण पुराने नियम के संतों और इस युग की कलीसिया का होगा। इसका विस्तारपूर्वक विवरण (1 कुरि. 15 : 51, 58 1 थिस. 3:13) में दिया गया है। हम विश्वास करते हैं कि यह स्वर्ग में उठा लिया जाना गुप्त है । चुने हुओं का और उद्धारकर्ता की प्रतिज्ञा का उल्लेख करता है। 


3. पृथ्वी पर अधिकार करने -


द्वितीय आगमन के दो भिन्न रूप हैं (1) गुप्त (अप्रगट), (2) सार्वजनिक । उसका प्रथम आगमन का भी दो गुप्त और सार्वजनिक रूप था।


वह बैतलेहम में गुप्त से आया था। उसका स्वागत कुछ लोगों ने किया जैसे चरवाहे, ज्ञानी पुरुषों, शिमौन और हनन्याह इत्यादि । तब वह सार्वजनिक रूप में आया जब उसने विजयी प्रवेश के समय यरूशलेम में स्वयं को राजा दिखाया। उसके 'अप्रगट' द्वितीय आगमन से मृतक सन्त जी उठेंगे, जीवित संत बदल जायेंगे और फिर वह आलौकिक रूप से स्वर्ग में अपने साथ उठा ले जायेगा। सार्वजनिक आगमन मसीह के केवल बादलों पर नहीं परन्तु पृथ्वी पर जैतून पहाड़ पर आयेगा (जकर्याह 14:4)।


जैतून पहाड़ पर अपने महान भविष्यवाणी के उपदेशों में हमारे प्रभु ने अपने आगमन की महान घटना को चित्रित किया है। वह स्वर्ग में बादलों सहित आयेगा उसके साथ स्वर्गदूतों की सेना और उसके हजारों लाखों संत लोग होंगे। यह महान क्लेश का अन्त होगा। यह अन्त में शैतानी और निंदा करने वाले अगुवों पर न्याय लायेगा ।


 यह शेष पीड़ित यहूदियों को मुक्त करेगा। पढ़ने वालें ध्यानपूर्वक (1 कुरि. 3:10, 15) को पढ़ें, यह स्पष्ट हो जाता है कि यीशु ख्रिस्त के न्याय आसन के सन्मुख प्रत्येक किया गया कार्य अनुमोदित किया जायेगा तथा उसका प्रतिफल दिया जायेगा । दूसरी ओर सांसारिक विश्वासी को स्वार्थी जीवन व्यतीत करने का पश्चाताप होगा। पवित्रशास्त्र इसको बताता है और स्पष्ट करता है। किसी के काम जल जायेंगे, उसे हानि ही होगी, कैसे हानि? नि:सन्देह प्राण व आत्मा की नहीं वरन प्रतिफल की। पाण का उद्धार उसके कार्य पर नहीं किन्तु उसके लिए प्रभ के द्वारा किए कार्य पर निर्भर करता है। परन्तु प्रतिफल का अर्जित करना मसीही पथ पर उसके व्यवहारिक कर्मों पर आधारित है।


यहाँ गिओं कटिंग द्वारा दिया गया सुन्दर उदाहरण सहायक हो सकता है । माना कि आप अपने पुत्र को किसी दूर शहर में महत्वपूर्ण कार्य के लिए भेजे । सो आप उसे आने-जाने की यात्रा का टिकट देंगे। आप उसे सभी आवश्यक निर्देश देंगे कि उसे कहाँ जाना है और क्या करना है। अन्त में उसे प्रोत्साहित करेंगे कि समय कम है, इसलिए सभी काम मन लगाकर करना ।


जब वह शहर में पहुँचता है तो थोड़े समय के लिए वह बहुत प्रयत्नशील और उत्साहित होगा परन्तु वह कार्य के छोटे से भाग को करने के पश्चात् कुछ पुरानी आदतों के हाथों में पड़ जाता है। वह आपके द्वारा दी गई विनम्र आशा को भूलकर इधर-उधर घूमना शुरू कर देता है । वह दृश्य-भ्रमण के लिए निकल जाता है । अन्त में शहर की बड़ी घड़ी को देखकर चौक पड़ता है। उसके पास एक मिनट भी शेष नहीं बचा । अंतिम रेलगाड़ी के वापस जाने का समय हो गया । वह दौड़ कर स्टेशन पर पहुँचता है। उसके पास इतना समय था कि वह सीट ले सके । सीटी बजती है और रेलगाड़ी चल पड़ती है। रेलगाड़ी से सम्बन्धित आवश्यक वस्तु उसके पास थी। हाँ उसके पास टिकट था । उसमें कोई संदेह नहीं क्योंकि आपने उसे खरीद कर दिया था। कोई भी अधिकारी उसके सुरक्षित घर पहुँचने की यात्रा करने में बाधा उत्पन्न करने का साहस नहीं कर सकता था।


परन्तु उसके काम और आपकी इच्छाओं का क्या हुआ । अहा, उसने आपकी प्रशंसा की मुस्कराहट को खो दिया । आप उसको उसकी विश्वासयोग्य सेवा के लिए "शाबास" नहीं कह सकते । फिर उस रात्रि के भोजन के समय वह पुत्र होने के कारण परिवार में बैठता है।


अब प्रत्येक विश्वासी के पास टिकट तो है। क्रूस पर अब महिमामय उद्धारकर्ता ने किराया दे दिया है। सभी विश्वासियों को निर्दोष ठहराया जायेगा (प्रेरितों 13:39) और उसको उसने धर्मी ठहराया उसे महिमा भी दी है (रोमियो 8:30)। फिर भी सभी विश्वासियों को उस दिन एक समान प्रतिफल नहीं मिलेगा। प्रत्येक जन अपने-अपने कामों के अनुसार प्रतिफल पायेगा (1 कुरि. 3:8)।


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1 टिप्पणी:

  1. बहुत ही सुन्दर ढंग से समझया वचनों के द्वारा भाई आपने। धन्यवाद

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