यीशु कि बपतिस्मा मे 4 तस्वीरें | Matthew 3:13-17 | 4 Pictures at Jesus' Baptism
यूहन्ना बपतिस्मा देने वाले और इसे देखने वाले सभी लोगों के लिए यीशु का बपतिस्मा निश्चित रूप से एक अद्भुत अनुभव था. हालाँकि, इसमें 4 महत्वपूर्ण आध्यात्मिक चित्र हैं जो हमारे विश्वास और ईश्वर के साथ संबंध का आधार हैं. इस अध्ययन मे इन्हे समझेंगे.
मत्ती रचित सुसमाचार जहां यूहन्ना यीशु से मीलते हैं. यहां यीशु के बतिस्मे में बहुत रोचक घटना घटती हुई हमें दिखती है, देखिए मत्ती 3:13-17 में क्या घटता है
13. उस समय यीशु मसीह गलील से यरदन के किनारे पर यूहन्ना के पास उस से बपतिस्मा लेने आया।
14. परन्तु यूहन्ना यह कहकर उसे रोकने लगा, कि मुझे तेरे हाथ से बपतिस्मा लेने की आवश्यकता है, और तू मेरे पास आया है?"
15. यीशु ने उस को यह उत्तर दिया, कि "अब तो ऐसा ही होने दे, क्योंकि हमें इसी रीति से सब धार्मिकता को पूरा करना उचित है; तब उस ने उस की बात मान ली।
16 और यीशु बपतिस्मा लेकर तुरन्त पानी में से ऊपर आया, और देखो, उसके लिये आकाश खुल गया; और उस ने परमेश्वर के आत्मा को कबूतर की नाईं उतरते और अपने ऊपर आते देखा।
17 और देखो, यह आकाशवाणी हुई, कि यह मेरा प्रिय पुत्र है, जिस से मैं अत्यन्त प्रसन्न हूं॥
जब हम इन वचनों को देखते हैं, तो हमें यह याद रखना चाहिए कि यह एक चित्र है. एक तस्वीर है बतिस्मा, एक तस्वीर है यह तस्वीर है हमारे उद्धार की. जब कोई बतिस्मा लेता है तो वह कोई इन्सान कोई ईसाई नहीं बन जाता. कोई धर्म परिवर्तन नहीं हो जाता जबकि कुछ मुर्ख लोग कहते हैं. यह एक तस्वीर है नये जीवन की जब कोई बतिस्मा लेता है तो यह एक तस्वीर है उसके पापों वाले जीवन की मौत की. पुराने जीवन दफनाने की और जब वह बाहर निकलता है तो वह तस्वीर है उसके नये जीवन की यीशु मसीह में एक नये जीवन की.
मतलब हम उनके साथ दफना दिए गए हैं और उसके साथ नया जन्म लिया. एक नये जीवन की शुरुआत हुई. एक दम नया जीवन ब्रेन्ड न्यु, अब यीशु जो उद्धारकर्ता है वह परमेश्वर है. उसे मन फिराने कि जरूरत नहीं थी फिर वो बतिस्मा लेने क्यों आया ? क्योंकि यूहन्ना का बतिस्मा तो मन फिराने वाला बतिस्मा था. यीशु को मन फिराने की जरूरत नहीं थी, क्यों आया?
देखिए यहां, चार तस्वीर है और वह चार तस्वीरें जरुरत है हमारे विकास के लिए, ताकि हम वह सब बन पाएं जो परमेश्वर हमें चाहता है. क्या तस्वीरें हैं ? आईए एक-एक कर हम इन्हें देखते हैं.
पहली तस्वीर है विनम्रता की, हम पहले यूहन्ना की विनम्रता को देखते हैं. वह यीशु को आया देख बोला मुझे तेरे हाथों से बतिस्मा लेने की आवश्यकता है और तू मेरे पास आया है। क्या आपको पता है यूहन्ना और यीशु मौसेरे भाई थे. और पृथ्वी पर जन्म की दृष्टि से देखें तो यूहन्ना यीशु से उम्र में बड़ा था. आज कल हम परिवार में भाईयों के बीच, मौसेरे भाइयों या चचेरे भाईयों के बीच इतनी प्रतिस्पर्धा है. बहुत तनाव देखते हैं, एक दूसरे से अपने आप को बेहतर साबित करने की कोशिश करते हैं.
पर यूहन्ना को देखो, परमेश्वर का अभिषेक उसके उपर था. वह जानता था कि सांसारिक दृष्टि में वह यीशु से बड़ा है, इसके बावजूद वह यीशु के सामने कुछ नहीं था. वह जानता था वह खुद साधारण पापी मनुष्य है जिसे उद्धार कि आवश्यकता है. और यह बात भी मान रहा था कि यीशु निष्कलंक है , उत्तम है वह महान परमेश्वर है , उद्धार कर्ता है. अपनी सारी सफलता के बावजूद भी अपनी असली गीरी हुई स्थिति को पहचाना. और उद्धारकर्ता की आवश्यकता को अपने जीवन में स्वीकारना यही असली विनम्रता है. यही वह विनम्रता है जो हम मोहना से सिख सकते हैं, परन्तु यहां यीशु विनम्रता भी दिखाई देती है.
हमें परमेश्वर कि सबसे रोचक कि बात यह लगती है कि परमेश्वर, परमेश्वर होने के बावजूद भी ब्रह्मांड का मालिक होने के बावजूद भी वह विनम्र है. इतना विनम्र कि वह मनुष्य बन गया और एक साधारण पापी मनुष्य के नायी बतिस्मा लेने आ गया. क्या महानता है, क्या परिपूर्णता है असली महानता, असली परिपूर्णता विनम्रता में है. और यहां विनम्रता का यह बहुत ही अच्छा तस्वीर है, जो हमें देखने को मिलती है.
दूसरी तस्वीर है व्यक्तित्व की,एक परमेश्वर में "तीन व्यक्ति" यहां यीशु है और पवित्र आत्मा है जो कबुतर के नायी उत्तरी है और पिता है, जो कहता है; यह मेरा प्रिय पुत्र है जिससे मैं अत्यंत ही प्रसन्न हूं. बाइबल में कोई भी एक पद ऐसा नहीं है जिसमें लिखा न हो कि परमेश्वर में तीन व्यक्ति हैं. पिता, पुत्र और पवित्र आत्मा, पर ऐसे बहुत सारें पद हैं जो इस बात को दर्शातें हैं कि परमेश्वर एक परमेश्वर में तीन व्यक्ति हैं. एक ही सार, एक ही प्रकृति पर तीन व्यक्तित्व. परमेश्वर में एक से ज्यादा व्यक्ति होने का चित्रण पुराने नियमों में भी हमें दिखता है.
ऐ परमेश्वर तीन व्यक्ति सृष्टि में सामिल थे, एक साथ तीनों व्यक्ति. पर यहां पर यह तस्वीर साफ है, परमेश्वर कौन है? कैसा है? उसकी प्रकृति, उसकि सामर्थ्य की यह दूसरी तस्वीर है. जो यीशु के बतिस्मे में हमें दिखाई देती है.
तीसरी तस्वीर है, जो हम देख सकते हैं और वह है पहचान की, परिचय की; देखिए यीशु पाप मुक्त है, निष्कलंक है वहीं परमेश्वर के राज्य का राजा है. मन फिराव का बतिस्मा लेने की कोई जरूरत नहीं थी. वह खुद है, जो हमें आग और पवित्र आत्मा का बतिस्मा देता है. और यूहन्ना ने बिल्कुल यही कहा; मुझे तेरे हाथों बतिस्मा लेना चाहिए और तु मेरे पास आया है. यीशु ने कहा; कि यह आवश्यक थी, यह आवश्यक है जिससे सब धार्मिकता पुरी हो. यीशु को धार्मिकता पुरी करने की जरूरत नहीं है, वह तो खुद ही धार्मिकता है. परन्तु हमारे लिए सब धर्म धार्मिकता पुरी हो, इसलिए यीशु ने यह किया.
परमेश्वर होते हुए भी, निश्कलंक होते हुए भी उसने मन फिराने का बतिस्मा लेकर अपनी पहचान, अपना परिचय हम पापी मनुष्यों से कराया. ताकी जब कोई मनुष्य यीशु पर विश्वास कर बतिस्मा देता है. तो वह अपनी पहचान यीशु की निश्कलंक धार्मिकता के साथ कर पाय. यीशु ने अपनी पहचान हमारे साथ कि जिससे हम अपनी पहचान उसके साथ कर सके. वह हमारे जैसा बना ताकि हम उसके जैसा बन पाएं. पहचान कि, परिचय कि अदला बदली यह है तिसरी तस्वीर जो यीशु के बतिस्मे में हमें दिखाई देती है.
और चौथीं है, पिता परमेश्वर द्वारा यीशु का पुष्टीकरण की; यह मेरा प्यारा है, प्रिय पुत्र है जिससे मैं अत्यंत प्रसन्न हूं. यह चौथीं तस्वीर बहुत ही अनौखा है कि पिता ने कहा; यह मेरा प्रिय पुत्र है जिससे मैं अत्यंत प्रसन्न हूं. क्या कारन था पिता की प्रसन्नता का ? केवल इतना कि यीशु उसका पुत्र था और उसने पिता का प्रतिज्ञा मानने के लिए पहला कदम बढ़ाया था. बस इतना ही अभी तो उसने एक भी चमत्कार नहीं किया था, एक भी उपदेश नहीं दिया था.
क्रूस पर चढ़ना तो अभी बहुत दूर था.फिर भी पिता पुत्र से अत्यधिक प्रसन्न था. इससे हमें और आपको क्या समझ में आना चाहिए? परमेश्वर को लेकर हमें प्रसन्नता इस बात को लेकर नहीं की हम उसके लिए कौन से बड़े-बडे़ काम करते हैं. यह हमारी सेवकायी कितनी बड़ी है कितनी सफल है. यह कितने पैसे कमाय, कितने लोग हम जानते हैं ? तब केवल और केवल उसके साथ मेरे संबंध के उपर निर्भर करता है.
यीशु पर विश्वास करके आप और हम परमेश्वर के सन्तान बन गए हैं. उसके पुत्र और पुत्रि बन गए हैं. जब हम उसकी आज्ञा कि तरफ अपना पहला कदम बढ़ाते हैं, तो पिता हमसे कहता है; यह मेरा पुत्र है, यह मेरी पुत्री है जिससे मैं अत्यधिक प्रसन्न हूं. परमेश्वर के साथ यह संबंध ही और संबंध से उच्चा प्रेम और विश्वास भरी आज्ञाकारीता ही है, जो परमेश्वर कि प्रसन्नता का कारन है और यह है चौथीं तस्वीर.
यीशु के बतिस्मे में छिपि है यह चार तस्वीरें; विनम्रता जो हमें अपनी स्थिति और जीवन में परमेश्वर की उद्धार कि आवश्यकता से अवगत कराती है. परमेश्वर में तीन व्यक्ति; पिता, पुत्र और पवित्र आत्मा का प्रकाशन बतिस्मे में यीशु पहचान हम पापी मनुष्यों के साथ होना जिससे हम अपना परिचय उसकी निष्कलंक धार्मिकता के साथ कर पाएं और परमेश्वर की प्रसन्नता केवल मात्र संबंध के आधार पर है.
परमेश्वर आपको आशीष दे.
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