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सबसे बड़ा मित्र | Best Friend - Know The Gospel

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सबसे बड़ा मित्र | Best Friend - Know The Gospel

यीशु हमारे पापों को हरने के लिए मरा। वह मरे हुओं में से इसलिए जीवित हुआ कि हम उसके मित्र बन सकें।


हम सभी ने पहले गलत काम किये हैं और हम सभी पापों के दण्ड को भी जानते हैं। हम में से कोई दण्ड पाना नहीं चाहता मगर अपने हृदय के भीतर यह जानते हैं कि हम दण्ड पाने के योग्य हैं। लेकिन अगर कोई जन कहे कि वह हमारे बदले हमारे पापों को दण्ड अपने ऊपर लेना चाहता है तब क्या होगा? हम तो उस दर्द से बच जाएंगे मगर उन्हें वह दण्ड भुगतना पड़ेगा जिसके हम हकदार थे। अधिकतर ऐसा नहीं होता है। केवल कोई अति घनिष्ठ मित्र ही ऐसा कदम उठाने का प्रयास कर सकता है। उस मित्र का नाम यीशु है। वह इस संसार में इसीलिए आया क्योंकि वह हम से प्रेम करता है।


भारी भीड़ यीशु के पीछे हो लेती थी क्योंकि वह उन्हें बुद्धि से पूर्ण उपदेश और चंगाई प्रदान किया करता था। इस स्थान में यीशु ने अपने चेलों को बताया कि वह मारा जाएगा और तीसरे दिन जीवित हो जाएगा। उस समय के धार्मिक अगुवे उसे जलने लगे और वे उसे कैद करना चाहते थे हालांकि उसने कोई पाप नहीं किया था। जो भी एक सप्ताह पूर्ण यीशु की प्रशंसा व स्तुति कर रही थी वही भीड़ उसे मृत्यु दण्ड दिलवाना चाहती थी।


क्या यीशु मरने वाले थे ? परमेश्वर ने यीशु के द्वारा हमारे पापों की समस्या के समाधान के लिए क्या योजना बनाई ? आईये देखें कि परमेश्वर की महान योजना किस प्रकार पूरी हुई। परमेश्वर हर समय सभी चीजों पर नियन्त्रण रखता है। आप इस कहानी को मत्ती 27 व 28 में देख सकते हैं।


तब हाकिम के सिपाहियों ने यीशु को किले में ले जाकर सारी पलटन उसके चारो ओर इकटठा की, और उसके कपड़े उतारकर उसे लाल रंग का बागा पहिनाया और काँटों का मुकुट गूँथकर उसके सिर पर रखा, और उसके दाहिने हाथ में सरकण्डा दिया और उसके आगे घुटने टेककर उसे ठट्ठों में उड़ाने लगे और कहा, "हे यहूदियों के राजा नमस्कार!" और उस पर थूका, और वही सकण्डा लेकर उसके सिर पर मारने लगे। जब वह उसका ठट्ठा कर चुके, तो वह बागा उस पर से उतारकर पिफर उसी के कपड़े उसे पहिनए, और क्रूस पर चढाने के लिए ले चले। [मत्ती 27:27-31]


क्रूस पर ठोका गया

एक तरीका जिसके द्वारा रोमी अधिकारी अपराधियों को धीरे धीरे मगर दर्दनाक मौत दिया करते थे।


दोपहर से लेकर तीसरे पहर तक उस सारे देश में अन्धेरा छाया रहा। तीसरे पहर के निकट यीशु ने बड़े शब्द से पुकार कर कहा, "एली एली लमा शबक्तनी?" अर्थात "हे मेरे परमेश्वर, हे मेरे परमेश्वर तू ने मुझे क्यों छोड़ दिया?"


तब यीशु ने बड़े शब्द से चिल्लाकर प्राण छोड़ दिए। और देखो, मन्दिर का परदा ऊपर से लेकर नीचे तक पफटकर दो भाग हो गया और धरती डोल गई और तड़क गई, और कब्रें खुल गई।


तब सूबेदार और जो उसके साथ यीशु का पहरा दे रहे थे, भूकम्प और जो कुछ हुबा था उसे देखकर अत्यन्त डर गये और कहा, "सचमुच यह परमेश्वर का पुत्र था!"


वहाँ बहुत सी स्त्रियाँ जो गलील से यीशु की सेवा करती हुई उसके साथ आई थीं, दूर से यह देख रहीं थीं। उनमें मरियम मगदलीनी, और याकूब और योसेस की माता मरियम, और और जब्दी के पुत्रों की माता थीं।


जब साँझ हुई तो यूसुफ नामक अरिमतिया का एक धनी मनुष्य, जो आप ही यीशु का चेला था, आया। यूसुफ ने शव लिया, उसे उज्जवल चादर में लपेटा, और उसे अपनी नई कब्र में रखा, जो उसने चट्टान में खुदवाई थी, और कब्र के के द्वार पर बड़ा सा पत्थर लुढ़काकर चला गया।


[मत्ती 27:45-46, 50-52, 54-57, 59-60]


मरियम मगदलीनी और दूसरी मरियम कब्र को देखने आई।

और देखो, एक बड़ा भूकम्प हुआ, क्योंकि प्रभु का एक दूत स्वर्ग से उतरा और पास आकर उसने पत्थर को लुढ़का दिया, और उस पर बैठ गया


स्वर्गदूत ने स्त्रियों से कहा, "मत डरो, मैं जानता हूँ कि तूम यीशु को जो क्रूस पर चढ़ाया गया था ढूँढती हो। वह यहाँ नहीं है, परन्तु अपने वचन के अनुसार जी उठा है। आओ यह स्थान देखों जहाँ यीशु पड़ा था, और शीघ्र जाकर उसके चेलों से कहो कि वह मृतकों में से जी उठा है, और वह तुम से पहले गलील को जाता है, वहाँ उसका दर्शन पाओगे ! देखो, मैं ने तुम से कह दिया।


वे भय और बड़े आनन्द के साथ कब्र से शीघ्र लौटकर उसके चेलों को समाचार देने के लिए लौट गई।


तब यीशु उन्हें मिला। कहा, "सलाम"। उन्होंने पास आकर और पाँव पकड़कर उसको दण्डवत किया। तब यीशु ने उनसे कहा, "मत डरो; मेरे भाईयों से जाकर कहो कि गलील को चेले जाएँ, वहाँ मुझे देखेंगे। [मत्ती 28:1-2, 5-10]


यीशु के पुनः जीवित होने के बाद करीब पांच सौ से ज्यादा लोगों ने उसे देखा, उससे बात की, और उसके साथ भोजन किया। उसके बाद वह स्वर्ग में अपने पिता के पास चला गया। वह आज भी वहां विद्यमान है। उसने प्रतिज्ञा की कि एक दिन वह अपने सब विश्वास करने वाले लोगों के लिए वापस आएगा।


स्वर्ग

स्वर्ग में न तो पाप और न कोई बुराई है। यदि हम अपने पापों की क्षमा के लिए यीशु पर विश्वास करते हैं, तो हम उसके साथ हमेशा के लिए स्वर्ग में हो सकते हैं।

 

यह वचन हमें बताता है कि हमें यीशु द्वारा किये गये काम का किस प्रकार प्रतिउत्तर देना चाहिए। कि यदि तू अपने मुँह से यीशु को प्रभु जानकर अंगीकार करे, और अपने मन विश्वास करे की कि परमेश्वर ने उसे मरे हुओं में से जिलाया है, तो तू निश्चय उद्धार पाएगा। रोमियों 10:9


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