महान उद्धारकर्ता सुसमाचार को जाने | Our Great Savior
परमेश्वर हमसे प्रेम करते हैं और उसने हमें पापों से बचाने के लिए यीशु को भेजा।
क्या कभी आप पर इतनी मुसीबत पड़ी है कि आपको लगने लगा हो कि आप मर ही जाएंगे? अगर नहीं, तो सोच कर देखें कि ऐसा होने पर कैसा होगा। हो सकता है कि आप कहीं भयंकर बाढ़ में फँस जाएं या खतरनाक तूफान में आप अपने आप को किसी पेड़ के नीचे छुपा लें। जब आप निर्णय ले रहे या सोच रहे होते हैं कि इस समस्या का समाधान कैसे होगा तभी, आप ऐसे व्यक्ति की खोज करने लगते हैं जो आपसे बुद्धिमान व बलवन्त हो और जो आपकी मदद कर सके। आप आशा करते हैं कि वे आपकी मदद जरूर करेगें। इसलिए आप उन्हें पुकारते और उनका इन्तजार करते हैं. और वे भी आपकी उम्मीद के अनुसार आपकी मदद करते हैं। आप हताश या चिन्तित महसूस करने की बजाय अब आशा करने लगते हैं। वे आपको बचा लेगें। आप जानते हैं कि वे आपको बचा लेगें।
पिछले लेख में, हमें पाप की समस्या और उसके परिणाम व परमेश्वर से अलगाव के बारे में पता चलता है। परमेश्वर ने प्रतीज्ञा की है कि वह समस्या का समाधान करेंगें ताकि हम दुबारा उसके साथ दोस्ती कर सकें। लम्बे समय तक लोगों को इस बात का अन्दाज़ा नहीं था कि परमेश्वर इस काम को कैसे करेंगे। क्या वह सेना की अगुवाई करने वाले योद्धा को भेजेगा या फिर वह धनी व शक्तिशाली राजा को भेजेगा?
परमेश्वर की अपनी खास योजना थी। उसकी योजना यह थी कि वह हमें हमारे पाप के दण्ड से बचाने के लिए अपने पुत्र भेजेगा। इस कहानी के विभिन्न भागों को हम मत्ती 1:18-25 व लूका 2:8-16 में पढ़ सकते हैं।
यीशु मसीह का जन्म इस प्रकार हुआ, कि जब उसकी की मगंनी यूसफ के साथ हो गई, तो उनके इकट्ठा होने से पहले ही वह पवित्र आत्मा की ओर से गर्भवती पाई गई। अतः उसके पति यूसुफ ने जो धर्मी था और उसे बदनाम करना नहीं चाहता था, उसे चुपके चुपके से त्याग देने का विचार किया।
जब वह इन बातों के सोच ही में था तो प्रभु का स्वर्गदूत उसे स्वप्न में दिखाई देकर कहने लगा, "हे यूसुफ ! दाऊद की सन्तान, तू अपनी पत्नी मरियम को यहाँ ले आने से मत डर, क्योंकि जो उसके गर्भ में है वह पवित्र आत्मा की ओर से है। वह पुत्र जनेगी और तू उसका नाम यीशु रखना, क्योंकि वह अपने लोगों का उनके पापों से उद्धार करेगा।" [मत्ती 1:18-21]
उनके वहाँ रहते हुए उसके जनने के दिन पूरे हुए और वह अपना पहिलौटा जनी आरे उसे कपड़े में लपेटकर चरनी में रखा; और उसने उसका नाम यीशु रखा ।
यह सब इसलिए हुआ कि जो वचन प्रभु भविष्यदक्ता के द्वारा कहा था, वह पूरा होः “देखो, एक कुवारी गर्भवती होगी और एक पुत्र जनेगी, और उसका नाम इम्मानुएल रखा जाएगा, जिसका अर्थ है परमेश्वर हमारे साथ ।
[लूका 2:6-7 अ, मत्ती 1:25ब, 22-23]
और उस देश में कितने गड़रिये थे, जो रात को मैदान में रहकर अपने झुण्ड का पहरा देते थे। और प्रभु का एक दूत उनके पास आ खड़ा हुआ, और प्रभु का तेज उनके चारों ओर चमका और वह बहुत डर गये। तब स्वर्गदूत ने उनसे कहा; "मत डरो; क्योंकि देखो, मैं तुम्हें बड़े अनन्द का सुसमाचार सुनाता हूँ जो सब लोगों के लिए होगा, कि आज दाऊद के नगर में तुम्हारे लिए उद्धारकर्ता जन्मा है, और यही मसीह प्रभु है। और इसका तुम्हारे लिए यह पता है कि तुम एक बालक को कपड़े में लिपटा हुआ और चरनी में पड़ा पाओगे।”
और उन्होंने तुरन्त जाकर मरियम और यूसुफ को, और चरनी में उस बालक को पड़ा देखा। [लूका 2:8-12,16]
बाइबल हमें बताती है कि यीशु ही परमेश्वर है और जब परमेश्वर ने जगत की सृष्टि की थी तो वह परमेश्वर के साथ था। यीशु सम्पूर्ण परमेश्वर व सम्पूर्ण मनुष्य थे। वह सर्वश्रेष्ठ उपहार है। यीशु का धरती पर आना हमारे पापों की समस्या के लिए परमेश्वर का समाधान है। इसलिए यीशु को उद्धारकर्ता के नाम से जाना जाता है-इसका अर्थ है कि वह हमें हमारे पापों से बचाने के लिए आया। यीशु मसीह, परमेश्वर व हमारे बीच रिश्ते को बहाल करने के लिए आये । परमेश्वर के पास एक सिद्ध योजना थी और यीशु ने उस योजना को पूरा किया ।
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