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Bible Verses For Success Life In Hindi | सफल जीवन के लिए 10 बाइबिल वचन | HIndi Bible Vachan

आज हम बाइबिल के कुछ ऐसे वचनों को जानेंगे जो कि बहुत ही आशीषित और अनुग्रकारी होने वाले हैं वैसे तो पूरी की पूरी बाइबल ही आशीषित और अनुग्रकारी वचनों से भरे हुए हैं लेकिन उनमें से कुछ चंद वचनों को लेकर आज में आप लोग के बीच में रखने वाला जो कि ऐसे वचन है जिसको आप रोज पढ़ोगे तो आपका जीवन एक सफलतापूर्वक जीवन हो जाएगा। तो आइए वचनों की और हम बढ़ते हैं.

Bible Verses For Success Life In Hindi | सफल जीवन के लिए 10 बाइबिल वचन | HIndi Bible Vachan

सफल जीवन के लिए 10 बाइबिल वचन (Bible Verses For Success Life In Hindi)


नीतिवचन 16:3 में दिया गया वचन है:

"अपने कामों को यहोवा पर डाल दे, इस से तेरी कल्पनाएं सिद्ध होंगी।"

यह वचन हमें संकेत देता है कि हमें अपने कार्यों और योजनाओं को परमेश्वर के सामर्थ्य पर छोड़ देना चाहिए। जब हम परमेश्वर के हाथों में अपने कार्यों को सौंपते हैं, तो वह हमारी कल्पनाओं को साकार होने में सहायता करता है। हमें यह याद रखना चाहिए कि परमेश्वर हमारे साथ सहयोग करना चाहता है और हमारी योजनाओं को सिद्ध करने में सहायता करने को तैयार है। जब हम उसे विश्वास और आज्ञानुसार चलते हैं, तो हमें सफलता मिलती है जो उसके आदेशों के अनुसार होती है।


1 राजा 2:3 में दिया गया वचन है:

"जो कुछ तेरे परमेश्वर यहोवा ने तुझे सौंपा है, उसकी रक्षा करके उसके मार्गों पर चला करना और जैसा मूसा की व्यवस्था में लिखा है, वैसा ही उसकी विधियों तथा आज्ञाओं, और नियमों, और चितौनियों का पालन करते रहना; जिस से जो कुछ तू करे और जहां कहीं तू जाए, उस में तू सफल होए।"


यह वचन बताता है कि हमें अपने परमेश्वर यहोवा द्वारा सौंपे गए सब कुछ की रक्षा करके और उसके मार्गों पर चलकर उसकी विधियों, आज्ञाओं, नियमों और चितौनियों का पालन करते रहना चाहिए। हमें मूसा की व्यवस्था के अनुसार चलना चाहिए, जैसे उसमें लिखा है। यह हमें यह दिखाता है कि जब हम परमेश्वर के आदेशों को मानते हैं और उनके अनुसार चलते हैं, तब हमारे सभी कार्य सफल होते हैं, चाहे हम कुछ भी करें और कहीं भी जाएं।


लूका 16:10 में दिया गया वचन है: 

"जो थोड़े से थोड़े में सच्चा है, वह बहुत में भी सच्चा है: और जो थोड़े से थोड़े में अधर्मी है, वह बहुत में भी अधर्मी है।" 


यह वचन हमें बताता है कि व्यक्ति की छोटी-छोटी कार्यों में भी उसकी सच्चाई या अधर्म का पता चलता है। जो व्यक्ति छोटी-छोटी चीजों में सच्चा है, वह बड़ी चीजों में भी सच्चा होगा। उसके विश्वासयोग्यता और नैतिकता छोटी स्थितियों में भी दिखेगी। वह व्यक्ति, जो थोड़े-थोड़े में अधर्मी है, वह बहुतों में भी अधर्मी होगा। इसलिए, हमें छोटी-छोटी कार्यों में भी सच्चाई और नैतिकता बनाए रखने का प्रयास करना चाहिए।


यशायाह 41:10 में यह वचन है:

"मत डर, क्योंकि मैं तेरे संग हूं, इधर उधर मत ताक, क्योंकि मैं तेरा परमेश्वर हूं; मैं तुझे दृढ़ करूंगा और तेरी सहायता करूंगा, अपने धर्ममय दाहिने हाथ से मैं तुझे सम्हाले रहूंगा॥"


यह वचन हमें आश्वस्त करता है कि हमें डरने की आवश्यकता नहीं है क्योंकि परमेश्वर हमारे साथ हैं। हमें विश्वास रखना चाहिए कि परमेश्वर हमारा संगी हैं और हमेशा हमारे पास हैं। हमें अंधाविश्वास से दूर रहना चाहिए और उसकी ओर ध्यान न देकर इधर-उधर न भटकना चाहिए। परमेश्वर हमें सबल बनाए रखेगा और हमारी सहायता करेगा। उसके धर्म के अनुसार हमारे दाहिने हाथ से वह हमें संभालेगा। हमें इस वचन पर आश्रय लेकर परमेश्वर की ओर भरोसा रखना चाहिए।


यिर्मयाह 17:7 में दिया गया वचन है:

"धन्य है वह पुरुष जो यहोवा पर भरोसा रखता है, जिसने परमेश्वर को अपना आधार माना हो।"


यह वचन हमें धन्य बताता है कि वह पुरुष जो यहोवा (परमेश्वर) पर भरोसा रखता है और उसे अपना आधार मानता है, वह धन्य है। इस वचन में हमें यह शिक्षा मिलती है कि हमें परमेश्वर पर पूर्ण विश्वास रखना चाहिए और उसे ही अपने जीवन का आधार बनाना चाहिए। परमेश्वर पर भरोसा रखने वाले व्यक्ति को धन्य माना जाता है, क्योंकि वह उनके विधानों और मार्गों पर चलता है और उनकी देखभाल में रहता है। यह वचन हमें परमेश्वर के वचनों पर आश्रय लेने और उसके पर निर्भर रहने की प्रेरणा देता है।


व्यवस्थाविवरण 8:18 में यह वचन है:

"परन्तु तू अपने परमेश्वर यहोवा को स्मरण रखना, क्योंकि वही है जो तुझे सम्पति प्राप्त करने का सामर्थ्य इसलिये देता है, कि जो वाचा उसने तेरे पूर्वजों से शपथ खाकर बान्धी थी उसको पूरा करे, जैसा आज प्रगट है।"


यह वचन हमें सिखाता है कि हमें अपने परमेश्वर, यहोवा, को स्मरण रखना चाहिए, क्योंकि वही हमें सम्पति प्राप्त करने की शक्ति देता है। यह उस वाचा को पूरा करने की सत्यता से संबंधित है, जो उसने हमारे पूर्वजों से शपथ खाकर बांधी थी और जो आज हमारे सामर्थ्य में प्रकट होती है। हमें परमेश्वर का ध्यान रखकर और उसके वचनों का पालन करके अपने जीवन को उसके आशीर्वाद और सम्पति के लिए तैयार रखना चाहिए।


भजन संगीता 37:4 में यह वचन है:

"यहोवा को अपने सुख का मूल जान, और वह तेरे मनोरथों को पूरा करेगा"


यह वचन हमें सिखाता है कि हमें यहोवा (परमेश्वर) को अपने सुख का मूल मानना चाहिए। अर्थात्, हमें उसके प्रति आनंद और संतुष्टि के साथ रहना चाहिए। जब हम यहोवा में प्रेम करते हैं और उसकी आज्ञा का पालन करते हैं, तो वह हमारे मनोरथों को पूरा करता है। यह अर्थात्, वह हमारे मन की इच्छाओं को साकार करता है और हमें उन्नति और सफलता में सहायता करता है। हमें यह विश्वास रखना चाहिए कि यहोवा हमारी चिन्ताओं को ध्यान में रखता है और हमें अपनी दया से संतुष्टि प्रदान करता है।


नीतिवचन 3:1-4 में यह वचन है:

"हे मेरे पुत्र, मेरी शिक्षा को न भूलना; अपने हृदय में मेरी आज्ञाओं को रखे रहना; क्योंकि ऐसा करने से तेरी आयु बढ़ेगी, और तू अधिक कुशल से रहेगा। कृपा और सच्चाई तुझ से अलग न होने पाएं; वरन उन को अपने गले का हार बनाना, और अपनी हृदय रूपी पटिया पर लिखना। और तू परमेश्वर और मनुष्य दोनों का अनुग्रह पाएगा, तू अति बुद्धिमान होगा।"


यह वचन हमें सिखाता है कि हमें अपने पिता की शिक्षा को याद रखना चाहिए और उनकी आज्ञाओं को अपने हृदय में संभाले रखना चाहिए। इसका पालन करने से हमारी आयु बढ़ती है और हम अधिक कुशलता से जीने का सामर्थ्य प्राप्त करते हैं। हमें कृपा और सत्यता को अपने जीवन से नहीं अलग करना चाहिए। उन्हें अपने गले की माला बनाकर और अपने हृदय की पटियों पर लिखकर हमेशा धारण करना चाहिए। इस प्रकार, हम परमेश्वर और मनुष्य दोनों की कृपा प्राप्त करते हैं और हम अत्यंत बुद्धिमान बन जाते हैं।


फिलिप्पियों 4:17 में यह वचन है: 

"यह नहीं कि मैं दान चाहता हूं परन्तु मैं ऐसा फल चाहता हूं, जो तुम्हारे लाभ के लिये बढ़ता जाए।"


यह वचन पौलुस द्वारा लिखे गए पत्र में है जहां उन्होंने फिलिप्पी के लोगों को अपने संगठनित धार्मिक सेवाओं के लिए धनराशि दी है। पौलुस यहां बता रहे हैं कि वह दान नहीं चाहता है ताकि उसे कोई आत्म-संतोष मिले, बल्कि उसकी इच्छा है कि उन्हें उस दान का फल मिले जो उनके लाभ के लिए बढ़ता जाए। यहां पौलुस अपने दान के मूल्य को बढ़ाने और एक उदाहरण साधारित करने का प्रयास कर रहे हैं। उन्होंने यह दान तब किया था जब वे आवश्यकता में थे और उन्हें आर्थिक सहायता की जरूरत थी। पौलुस की यह इच्छा है कि उनका दान फिलिप्पी के लोगों के आवश्यकताओं को पूरा करने में मदद करें और उन्हें लाभ प्रदान करें। 


यह वचन हमें एक सच्चे और सही दान के महत्व को बताता है, जो अपने स्वार्थ से परे होता है और दूसरों के लाभ के लिए बढ़ता है।


मत्ती 6:33 में यह वचन है: 

"इसलिये पहिले तुम उसे राज्य और धर्म की खोज करो तो ये सब वस्तुएं भी तुम्हें मिल जाएंगी।"


यह वचन स्पष्ट करता है कि हमें प्रथमतः परमेश्वर के राज्य और उसके धर्म की खोज करनी चाहिए। जब हम परमेश्वर को प्राथमिकता देते हैं और उसकी आज्ञा का पालन करते हैं, तो वह हमें अपनी ओर सभी आवश्यकताओं को पूरा करने की वस्तुएं भी प्रदान करता है। यह हमें सच्ची सफलता की प्राप्ति के लिए संकेत करता है, जो आंतरिक और बाह्य रूप से आपूर्ति, सुरक्षा और संपूर्णता को समावेश करती है।


परमेश्वर इन वचनों के द्वारा आपको आशीष दे।


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