जब आपको हार मानने का मन करें, याद रखें कि परमेश्वर आपसे प्यार करता हैं और चाहता है की आप अपने जीवन को भरपुरी से जीए, परमेश्वर की योजना आपको समृद्ध करने की है न कि आपको हानि पहुँचाने की। यदि आप जीवन में संघर्ष कर रहे हैं, तो हियाव ना छोड़े अभी और बेहतर चीजें आने वाली हैं! जैसा, हमें यिर्मयाह अध्याय 29 में पढ़ने को मिलता हैं...
"क्योंकि यहोवा की यह वाणी है, कि जो कल्पनाएं मैं तुम्हारे विषय करता हूँ उन्हें मैं जानता हूँ, वे हानी की नहीं, वरन कुशल ही की हैं, और अन्त में तुम्हारी आशा पूरी करूंगा। तब उस समय तुम मुझ को पुकारोगे और आकर मुझ से प्रार्थना करोगे और मैं तुम्हारी सुनूंगा।" यिर्मयाह 29:11-12
हियाव ना छोड़ो (Don't Give Up Bible Verse)
प्रार्थना में
"फिर उस ने (यीशु मसीह ) इस के विषय में कि नित्य प्रार्थना करना और हियाव न छोड़ना चाहिए उन से यह दृष्टान्त कहा।" लूका 18:1
वचन हमें बतात है प्रभु यीशु अपने चेलों को बताते हुए कहते हैं की हमें नित्य प्रार्थना करनी चाहिए और हार नहीं माननी चाहिए। इसके साथ ही, यह दिखाने का भी प्रयास किया गया है कि जब परमेश्वर हमारे साथ हैं तो हमें अपनी मानसिकता को दृढ़ रखकर समस्याओं का सामना करना चाहिए।
धीरज में
इसलिये जब हम पर ऐसी दया हुई, कि हमें यह सेवा मिली, तो हम हियाव नहीं छोड़ते। 2 कुरिन्थियों 4:1
यह वचन सिखाता है कि जब हमें दया मिलता है कि हमें ईश्वरीय सेवा का मौका मिला है, तो हमें अपने कार्य में हियाव नहीं छोड़ना चाहिए। यह दिखाता है कि हमें अपने कार्य को समर्पित और प्रतिबद्ध दृढ़ता के साथ करना चाहिए, चाहे स्थितियाँ कैसी भी हों।
आशा में
इसलिये हम हियाव नहीं छोड़ते; यद्यपि हमारा बाहरी मनुष्यत्व नाश भी होता जाता है, तौभी हमारा भीतरी मनुष्यत्व दिन प्रतिदिन नया होता जाता है। 2 कुरिन्थियों 4:16
अर्थात प्रभु यीशु के आशा में रहकर हियाव नहीं छोड़ना चाहिए। यह वचन यह बताती है कि हालात जैसे-जैसे हमारे बाहरी शरीर में परिवर्तन होता है, हमारा आंतरिक मनुष्यत्व दिन-प्रतिदिन नया होता जाता है। इसका मतलब है कि हमारी आत्मा में नवा स्वरूप बढ़ता जाता है, जो हमें संघर्षों के बावजूद आगे बढ़ने की ऊर्जा प्रदान करता है।
कार्य में
"हम भले काम करने में हियाव न छोड़े, क्योंकि यदि हम ढीले न हों, तो ठीक समय पर कटनी काटेंगे।" गलातियों 6:9
अर्थात हमें भले कामों में हियाव नहीं छोड़ना चाहिए, क्योंकि अगर हम आलस्य नहीं करते हैं, तो सही समय पर प्रभु येशु में हमारी मेहनत का फल मिलेगा। यह वचन यह सिखाती है कि मेहनती और संघर्षशील दृष्टिकोण से काम करना मसीह में हमें सफलता की दिशा में आगे बढ़ने में मदद करता है।
भरोसा करने में
"इसलिये मैं बिनती करता हूं कि जो क्लेश तुम्हारे लिये मुझे हो रहे हैं, उनके कारण हियाव न छोड़ो, क्योंकि उन में तुम्हारी महिमा है." इफिसियों 3:13
प्रेरित पौलुस कहते हैं कि भरोसे में रहकर हियाव नहीं छोड़ना चाहिए। इसमें उद्धारण दिया जाता है कि क्लेश और परेशानियाँ जो हमारे साथ हो रही हैं, उन्हें सहते हुए भी हमें उन्हें हार नहीं मानना चाहिए, क्योंकि इन चुनौतियों में हमारी महिमा बढ़ती है और हमारे आत्म-विकास में मदद करती है।
भलाई करने में
"और तुम, हे भाइयो, भलाई करने में हियाव न छोड़ो।"
2 थिस्सलुनीकियों 3:13
भलाई करते समय हियाव नहीं छोड़ना चाहिए। पौलुस प्रभु यीशु मसीह में आज्ञा और समझातें हुए कहते है कि हमें अच्छे काम करते समय थकावट या हार नहीं माननी चाहिए, बल्कि हमें आगे बढ़ते रहने के लिए उत्साहित रहना चाहिए।
तड़ना सहने में
"और तुम उस उपदेश को जो तुम को पुत्रों की नाईं दिया जाता है, भूल गए हो, कि हे मेरे पुत्र, प्रभु की ताड़ना को हलकी बात न जान, और जब वह तुझे घुड़के तो हियाव न छोड़।" इब्रानियों 12:5
इस वचन में बताया गया है कि हमें प्रभु की ताड़ना को हलकी बात नहीं मानना चाहिए और जब हमें वह संघर्ष आता है, तो हियाव नहीं छोड़ना चाहिए। यह वचन सिखाती है कि हमें परमेश्वर की शिक्षा और ताड़ना को समझकर उसमें दृढ़ रहना चाहिए, ताकि हमारे आत्म-विकास और स्थिरता में मदद हो सके।
जीवन में संघर्ष आना अवश्य है, लेकिन हमें यह याद रखना चाहिए कि हार मानने के समय पर भी हमारे साथ परमेश्वर का साथ है, और उनकी योजना हमें सफलता की दिशा में आगे बढ़ने में मदद करती है। जीवन के संघर्षों से हार नहीं मानने और हियाव नहीं छोड़कर हम अपने लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए प्रतिबद्ध रहने चाहिए, क्योंकि बेहतर और सुखद दिन आने वाले हैं।
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