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मरियम (Mary) - Life and faith of Mary

मरियम (Mary) लूका 1-2, मत्ती 1-2


मरियम, जिन्हें हम यीशु मसीह की माता के रूप में जानते हैं, का जीवन विश्वास, आज्ञापालन और नम्रता की एक अद्वितीय कहानी है। उनके जीवन की महत्वपूर्ण घटनाएँ बाइबिल के लूका और मत्ती के प्रारंभिक अध्यायों में वर्णित हैं।

मरियम (Mary) - Life and faith of Mary


प्रारंभिक जीवन और घोषणा


मरियम का जन्म एक यहूदी परिवार में हुआ था। वह गलील के नासरत नगर में रहती थीं। उनके जीवन में एक महत्वपूर्ण मोड़ तब आया जब गेब्रियल नामक एक स्वर्गदूत ने उनसे मुलाकात की। लूका 1:26-38 में वर्णित इस घटना के अनुसार, गेब्रियल ने मरियम को बताया कि वह परमेश्वर के पुत्र को जन्म देंगी। स्वर्गदूत ने कहा, "हे मरियम, मत डर, क्योंकि परमेश्वर ने तुझ पर अनुग्रह किया है।" यह सुनकर मरियम बहुत ही आश्चर्यचकित हुईं, लेकिन उन्होंने परमेश्वर की योजना को स्वीकार कर लिया और कहा, "देख, मैं प्रभु की दासी हूँ; मुझे तेरे वचन के अनुसार हो।"


यूसुफ का सपना


मत्ती 1:18-25 में वर्णित है कि जब यूसुफ, जो मरियम के मंगेतर थे, को मरियम के गर्भवती होने का पता चला, तो वे चिंतित हो गए। लेकिन स्वर्गदूत ने यूसुफ को सपना दिया और समझाया कि यह सब परमेश्वर की योजना का हिस्सा है। स्वर्गदूत ने कहा, "यूसुफ, दाऊद की सन्तान, अपनी पत्‍नी मरियम को अपने घर ले जाने से मत डर; क्योंकि जो उसके गर्भ में है वह पवित्र आत्मा की ओर से है।" इसके बाद यूसुफ ने मरियम को अपने घर ले लिया और परमेश्वर की आज्ञा का पालन किया।


यीशु का जन्म


लूका 2 में वर्णित है कि मरियम और यूसुफ ने बेथलहम की यात्रा की, जहाँ मरियम ने यीशु को एक चरनी में जन्म दिया। उस रात, स्वर्गदूतों ने चरवाहों को इस महान घटना की सूचना दी, और वे बालक यीशु को देखने के लिए आए। मत्ती 2 में वर्णित है कि पूर्व से ज्योतिषियों ने एक तारा देखकर यीशु की खोज की और उन्हें सोना, लोबान और गंधरस भेंट स्वरूप दिए।


मंदिर में प्रस्तुति


लूका 2:22-40 में मरियम और यूसुफ ने यीशु को यरूशलेम के मंदिर में प्रस्तुत किया। वहाँ एक धर्मी और भक्त व्यक्ति सिमोन ने बालक यीशु को गोद में लेकर परमेश्वर की स्तुति की और कहा कि वह मसीह को देखने के बाद शांति से मर सकता है। अन्ना नामक एक भविष्यवक्ता ने भी यीशु को देखा और उसकी प्रशंसा की।


मिस्र की यात्रा


मत्ती 2:13-15 में वर्णित है कि एक स्वर्गदूत ने यूसुफ को सपना दिया और बताया कि हेरोदेस राजा यीशु को मार डालने की योजना बना रहा है। यूसुफ ने तत्काल अपनी पत्‍नी मरियम और बालक यीशु के साथ मिस्र की ओर प्रस्थान किया और वहाँ तब तक रहे जब तक हेरोदेस की मृत्यु नहीं हो गई। इस घटना ने भविष्यवाणी को पूरा किया, "मिस्र से मैंने अपने पुत्र को बुलाया।"


मरियम का चरित्र


मरियम का जीवन एक ऐसा आदर्श प्रस्तुत करता है जो हमें विश्वास, आज्ञापालन और नम्रता की सीख देता है। उन्होंने बिना किसी सवाल के परमेश्वर की योजना को स्वीकार किया और अपनी सभी कठिनाइयों का सामना धैर्य और समर्पण के साथ किया। मरियम का विश्वास इतना मजबूत था कि वे परमेश्वर की किसी भी योजना को बिना किसी संदेह के स्वीकार करने के लिए तैयार थीं। उनका आज्ञापालन उनके जीवन का महत्वपूर्ण हिस्सा था, चाहे वह गेब्रियल के संदेश को स्वीकार करना हो या यूसुफ के साथ मिस्र की यात्रा करना।


मरियम का धैर्य


मरियम ने अपने जीवन में अनेक कठिनाइयों का सामना किया। उन्होंने अपने पुत्र यीशु के जन्म के समय का संघर्ष देखा, जब उन्हें एक चरनी में जन्म देना पड़ा। उन्होंने हेरोदेस के क्रूर आदेश के कारण मिस्र की ओर भागने की कठिन यात्रा की। इसके बावजूद, मरियम ने कभी हार नहीं मानी और हमेशा अपने विश्वास में दृढ़ रहीं।


मरियम की विनम्रता


मरियम की विनम्रता उनके जीवन का एक महत्वपूर्ण गुण था। उन्होंने परमेश्वर की योजना को बिना किसी गर्व के स्वीकार किया और हमेशा स्वयं को परमेश्वर की दासी माना। उनकी विनम्रता ने उन्हें एक आदर्श माता और एक समर्पित सेविका बनाया।


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निष्कर्ष

मरियम की कहानी हमें यह सिखाती है कि कैसे विश्वास, आज्ञापालन, धैर्य और विनम्रता के साथ हम अपने जीवन में कठिनाइयों का सामना कर सकते हैं। उनकी कहानी हमें यह भी याद दिलाती है कि परमेश्वर की योजना हमेशा हमारे भले के लिए होती है, चाहे हमें वह उस समय समझ में न आए। मरियम का जीवन एक प्रेरणा स्रोत है जो हमें अपने विश्वास को मजबूत करने और अपने जीवन में परमेश्वर की योजना को स्वीकार करने की प्रेरणा देता है। 


इस प्रकार, मरियम की कहानी हमें यह सिखाती है कि हम कैसे अपने जीवन में उनके जैसे गुणों को अपनाकर एक समर्पित और विश्वासपूर्ण जीवन जी सकते हैं। उनके जीवन का हर पहलू हमें एक नई सीख देता है और हमें हमारे जीवन में सही मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करता है।

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