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प्रेम: परमेश्वर का सबसे बड़ा उपहार | Love: God's Greatest Gift

बाइबल में प्रेम का महत्व

प्रेम एक ऐसी भावना है जिसे शब्दों में व्यक्त करना अक्सर कठिन होता है, लेकिन बाइबल में इसे बहुत सुंदरता और स्पष्टता से समझाया गया है। प्रेम केवल एक भावना नहीं है, बल्कि यह एक क्रिया है, एक आदर्श जीवन जीने का तरीका है। बाइबल के विभिन्न हिस्सों में प्रेम के बारे में विस्तार से चर्चा की गई है। आइए इन में से कुछ प्रमुख वचनों पर विचार करें और जानें कि प्रेम वास्तव में क्या है।

प्रेम: परमेश्वर का सबसे बड़ा उपहार | Love: God's Greatest Gift

प्रेम का वर्णन - 1 कुरिन्थियों 13

1 कुरिन्थियों 13 को अक्सर "प्रेम का अध्याय" कहा जाता है। यह अध्याय प्रेम की परिभाषा और महत्व को स्पष्ट रूप से बताता है:


**"प्रेम धैर्यवान है, प्रेम कृपालु है। यह ईर्ष्या नहीं करता, यह घमंड नहीं करता, यह अभिमान नहीं करता। यह असभ्य नहीं है, यह स्वार्थी नहीं है, यह जल्दी गुस्सा नहीं करता, यह गलतियों का लेखा नहीं रखता। प्रेम अन्याय से प्रसन्न नहीं होता, लेकिन सत्य से प्रसन्न होता है। यह सब कुछ सहता है, सब कुछ विश्वास करता है, सब कुछ आशा करता है, सब कुछ सहन करता है। प्रेम कभी विफल नहीं होता।"** (1 कुरिन्थियों 13:4-8)


इस वचन से हमें यह समझने को मिलता है कि सच्चा प्रेम क्या है। यह धैर्यवान और कृपालु होता है, इसमें कोई ईर्ष्या या घमंड नहीं होता। प्रेम स्वार्थी नहीं होता, यह दूसरे की भलाई के लिए हमेशा तत्पर रहता है। प्रेम कठिनाइयों और चुनौतियों के बावजूद टिकता है और कभी हार नहीं मानता।


परमेश्वर का महान प्रेम - यूहन्ना 3:16

**"क्योंकि परमेश्वर ने जगत से ऐसा प्रेम रखा कि उसने अपना इकलौता पुत्र दे दिया, ताकि जो कोई उस पर विश्वास करे वह नाश न हो, परंतु अनंत जीवन पाए।"** (यूहन्ना 3:16)


यह वचन परमेश्वर के महान प्रेम को दर्शाता है। परमेश्वर ने अपने इकलौते पुत्र, यीशु मसीह, को हमारे पापों के लिए बलिदान कर दिया ताकि हम अनंत जीवन प्राप्त कर सकें। यह प्रेम का सबसे बड़ा उदाहरण है। परमेश्वर का यह बलिदान हमें यह सिखाता है कि सच्चा प्रेम बलिदान देने के लिए हमेशा तैयार रहता है और दूसरों की भलाई के लिए स्वयं को न्योछावर कर देता है।


प्रेम का स्रोत - 1 यूहन्ना 4:7-21

**"हे प्रियो, हम आपस में प्रेम रखें, क्योंकि प्रेम परमेश्वर से है; और जो कोई प्रेम करता है वह परमेश्वर से जन्मा है और परमेश्वर को जानता है। जो प्रेम नहीं करता वह परमेश्वर को नहीं जानता, क्योंकि परमेश्वर प्रेम है।"** (1 यूहन्ना 4:7-8)


यह वचन स्पष्ट करता है कि प्रेम का वास्तविक स्रोत परमेश्वर है। यदि हम परमेश्वर से प्रेम करते हैं, तो हम स्वाभाविक रूप से एक दूसरे से भी प्रेम करेंगे। परमेश्वर को जानने का अर्थ है प्रेम को जानना, क्योंकि परमेश्वर स्वयं प्रेम है। इसके आगे, 1 यूहन्ना 4:19-21 में लिखा है:


**"हम इसलिये प्रेम करते हैं, कि पहिले उस ने हम से प्रेम किया। यदि कोई कहे, मैं परमेश्वर से प्रेम रखता हूं, और अपने भाई से बैर रखे, तो वह झूठा है; क्योंकि जो अपने भाई से, जिसे उसने देखा है, प्रेम नहीं रखता, वह परमेश्वर से भी, जिसे उसने नहीं देखा, प्रेम नहीं रख सकता।"**


इस वचन के माध्यम से हम सीखते हैं कि प्रेम केवल एक भावना नहीं है, बल्कि एक क्रिया है जिसे हमें अपने दैनिक जीवन में प्रकट करना चाहिए। हम परमेश्वर से प्रेम करते हैं क्योंकि उसने पहले हमसे प्रेम किया, और इस प्रेम का सबसे अच्छा उदाहरण है कि हम अपने भाइयों और बहनों से भी प्रेम करें।


निष्कर्ष

प्रेम बाइबल के सबसे महत्वपूर्ण और केंद्रीय संदेशों में से एक है। 1 कुरिन्थियों 13 हमें सच्चे प्रेम का वर्णन देता है, यूहन्ना 3:16 हमें परमेश्वर के महान प्रेम का उदाहरण देता है, और 1 यूहन्ना 4:7-21 हमें सिखाता है कि प्रेम का स्रोत परमेश्वर है और हमें कैसे अपने जीवन में इस प्रेम को प्रकट करना चाहिए।


प्रेम केवल शब्दों में नहीं, बल्कि हमारे कार्यों में दिखाई देना चाहिए। यह धैर्य, कृपा, बलिदान और निःस्वार्थता के रूप में प्रकट होता है। जब हम अपने जीवन में परमेश्वर के प्रेम को समझते और स्वीकार करते हैं, तो हम अपने चारों ओर के लोगों से भी सच्चा प्रेम कर सकते हैं। यह प्रेम ही हमें एकजुट करता है, हमें मजबूत बनाता है और हमें परमेश्वर के करीब लाता है। इसलिए, आइए हम प्रेम को अपने जीवन का केंद्र बनाएं और हर दिन इसे अपने कार्यों और व्यवहार में प्रकट करें।


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