बाइबल में रिश्तों के बारे में वचन | Bible Verses About Relationships In Hindi - Click Bible

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बाइबल में रिश्तों के बारे में वचन | Bible Verses About Relationships In Hindi


रिश्ते हमारे जीवन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं। चाहे वह परिवार के साथ हों, दोस्तों के साथ हों, या परमेश्वर के साथ, बाइबल में रिश्तों को मजबूत और अर्थपूर्ण बनाने के लिए कई शिक्षाएँ दी गई हैं। ये वचन हमें प्रेम, क्षमा, दया, और विनम्रता जैसे गुणों को अपनाने के लिए प्रेरित करते हैं। आइए देखें कि बाइबल रिश्तों के बारे में हमें क्या सिखाती है।

बाइबल में रिश्तों के बारे में वचन | Bible Verses About Relationships In Hindi
बाइबल में रिश्तों के बारे में वचन | Bible Verses About Relationships In Hindi 



1. रिश्तों की नींव है प्रेम

प्रेम हर रिश्ते की नींव है। बाइबल हमें निःस्वार्थ और सच्चे प्रेम को अपनाने की शिक्षा देती है।

  • 1 कुरिन्थियों 13:4-7:
    "प्रेम धीरजवन्त है, और कृपालु है; प्रेम न तो ईर्ष्या करता है और न डींग मारता है, वह अभिमान नहीं करता।"
    यह वचन सच्चे प्रेम के गुणों को बताता है। चाहे वह विवाह का रिश्ता हो, दोस्ती हो, या परिवार हो, प्रेम में धीरज और दया रखना रिश्तों को मजबूत बनाता है।

  • यूहन्ना 13:34-35:
    "मैं तुम्हें एक नई आज्ञा देता हूं, कि एक दूसरे से प्रेम रखो; जैसे मैंने तुम से प्रेम रखा है।"
    यीशु ने हमें बिना शर्त और बलिदानी प्रेम का उदाहरण दिया, और हमें भी ऐसा ही प्रेम करने को कहा है।


2. क्षमा है रिश्तों की कुंजी

हर रिश्ते में कभी न कभी समस्याएँ आती हैं, लेकिन क्षमा रिश्तों को बनाए रखने में मदद करती है।

  • इफिसियों 4:32:
    "एक दूसरे के प्रति कृपालु और करुणावान बनो, और एक दूसरे के अपराध क्षमा करो, जैसे परमेश्वर ने मसीह में तुम्हें क्षमा किया।"
    क्षमा न केवल दूसरों को दिया जाने वाला उपहार है, बल्कि यह हमारे दिल को भी शांति प्रदान करता है।

  • मत्ती 18:21-22:
    "पतरस ने पूछा, 'प्रभु, मेरे भाई के अपराध करने पर मैं कितनी बार उसे क्षमा करूं?' यीशु ने कहा, 'सत्तर बार सात बार।'"
    यह सिखाता है कि हमें बिना गिनती किए क्षमा करना चाहिए, जैसे परमेश्वर हमें बार-बार क्षमा करता है।


3. सम्मान और आदर से बने मजबूत रिश्ते

सम्मान और आदर रिश्तों को स्थिरता और शांति प्रदान करते हैं।

  • रोमियों 12:10:
    "आपस में प्रेम से भक्ति रखो; और एक दूसरे को आदर देने में बढ़ चढ़कर रहो।"
    जब हम दूसरों को खुद से अधिक आदर देते हैं, तो रिश्तों में विश्वास और प्रेम गहरा होता है।

  • इफिसियों 6:1-3:
    "हे बालकों, अपने माता-पिता की आज्ञा का पालन करो, क्योंकि यह उचित है। 'अपने पिता और माता का आदर कर,' यह आज्ञा प्रतिज्ञा सहित है।"
    परिवार में सम्मान और आज्ञाकारिता से रिश्ते में सामंजस्य और आशीर्वाद आता है।


4. मित्रता में सच्चाई और विश्वास

सच्चे मित्र जीवन का आशीर्वाद होते हैं, और बाइबल हमें सच्ची मित्रता के गुणों को अपनाने की शिक्षा देती है।

  • नीतिवचन 17:17:
    "मित्र हर समय प्रेम करता है, और भाई संकट के समय के लिए उत्पन्न होता है।"
    सच्चे मित्र हमेशा सहायक होते हैं और कठिन समय में हमारे साथ खड़े रहते हैं।

  • नीतिवचन 27:17:
    "जैसे लोहा लोहे को तेज करता है, वैसे ही एक मनुष्य दूसरे को तेज करता है।"
    सच्चे मित्र हमें आत्मिक और नैतिक रूप से सुधारने में मदद करते हैं।


5. विनम्रता और सेवा से मजबूत होते हैं रिश्ते

विनम्रता और सेवा का भाव रिश्तों में मजबूती लाता है।

  • फिलिप्पियों 2:3-4:
    "स्वार्थ या व्यर्थ अभिमान से कुछ न करो, पर दीनता से एक दूसरे को अपने से श्रेष्ठ समझो।"
    जब हम दूसरों की भलाई को प्राथमिकता देते हैं, तो रिश्ते गहरे और सच्चे बनते हैं।

  • मरकुस 10:45:
    "मनुष्य का पुत्र इसलिये नहीं आया कि उसकी सेवा टहल की जाए, परन्तु इसलिये आया कि वह सेवा करे।"
    यीशु ने हमें सेवा और बलिदान का आदर्श दिखाया, और हमें अपने रिश्तों में यही भावना अपनानी चाहिए।


6. परमेश्वर के साथ रिश्ता है सबसे महत्वपूर्ण

दूसरों के साथ हमारे रिश्ते तभी फलते-फूलते हैं, जब हमारा परमेश्वर के साथ रिश्ता मजबूत होता है।

  • मत्ती 22:37-39:
    "'अपने परमेश्वर से अपने सारे मन, प्राण और बुद्धि से प्रेम रख।' यह पहली और मुख्य आज्ञा है। और दूसरी है: 'अपने पड़ोसी से अपने समान प्रेम रख।'"
    जब हम परमेश्वर से प्रेम करते हैं, तो उसका प्रेम हमारे दिलों में भर जाता है और दूसरों तक पहुँचता है।

  • यूहन्ना 15:5:
    "मैं दाखलता हूं; तुम डालियां हो। जो मुझ में बना रहता है और मैं उसमें, वही बहुत फल देता है।"
    परमेश्वर के साथ जुड़े रहकर हम अपने रिश्तों में आनंद और शांति पा सकते हैं।


निष्कर्ष

बाइबल हमें प्रेम, क्षमा, सम्मान, और विनम्रता जैसे गुणों को अपनाने की शिक्षा देकर हमारे रिश्तों को मजबूत करने का मार्ग दिखाती है। जब हम परमेश्वर को अपने जीवन और रिश्तों के केंद्र में रखते हैं, तो हमारे सभी संबंध फलते-फूलते हैं।


इन वचनों से प्रेरित होकर अपने रिश्तों में सुधार लाएँ और दूसरों के साथ मसीह के प्रेम को प्रतिबिंबित करें। रिश्ते परमेश्वर का एक अनमोल उपहार हैं, और इन्हें उनकी शिक्षाओं से संवारना हमारे लिए आशीर्वाद है।

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