विवाह एक पवित्र और परमेश्वर द्वारा स्थापित संस्था है। बाइबल में विवाह के बारे में कई महत्वपूर्ण वचन दिए गए हैं, जो एक सफल और खुशहाल विवाह जीवन की दिशा को स्पष्ट करते हैं। विवाह केवल दो व्यक्तियों का मिलन नहीं है, बल्कि यह एक दिव्य संबंध है, जो परमेश्वर के उद्देश्य और आशीर्वाद के तहत होता है। आइए हम बाइबल के कुछ प्रमुख वचनों पर विचार करें, जो हमें विवाह के सही उद्देश्य और महत्व को समझने में मदद करते हैं।
1. ईश्वर ने विवाह की स्थापना की (उत्पत्ति 2:24)
"इसलिये मनुष्य अपने पिता और अपनी माता को छोड़कर अपनी पत्नी के साथ जुड़ जाएगा, और वे दोनों एक शरीर होंगे।"
यह वचन बताता है कि विवाह परमेश्वर के द्वारा स्थापित किया गया है। परमेश्वर ने आदम और हव्वा को एक-दूसरे के साथी के रूप में बनाया। विवाह का उद्देश्य दो व्यक्तियों को एक दूसरे के साथ जोड़ना है ताकि वे एक-दूसरे में संपूर्णता पाए और एक साथ परमेश्वर की सेवा कर सकें।
2. विवाह में प्रेम और बलिदान (इफिसियों 5:25)
"हे पतियों, जैसे मसीह ने कलीसिया से प्रेम किया और अपने आप को उसके लिये दे दिया, वैसे ही तुम भी अपनी पत्नियों से प्रेम करो।"
इस वचन में पतियों से कहा गया है कि वे अपनी पत्नियों से मसीह के समान प्रेम करें। मसीह ने अपनी कलीसिया के लिए अपना बलिदान दिया, और उसी प्रकार पतियों को भी अपनी पत्नियों के लिए बलिदान और प्रेम दिखाना चाहिए। विवाह में प्यार केवल एक भावना नहीं है, बल्कि यह एक कार्य है, जिसमें समर्पण, समझ और सेवा शामिल है।
3. एक दूसरे को समझना और सम्मान देना (1 पतरस 3:7)
"हे पतियों, अपनी पत्नियों से ज्ञान के साथ निवास करो, सम्मान के साथ, क्योंकि वे भी तुमसे कमजोर हैं, और जीवित अनमोल धरोहर के रूप में तुम्हारे साथ सहयात्री हैं, ताकि तुम्हारे प्रार्थनाएँ रुक न जाएं।"
यह वचन पतियों को उनके पत्नियों के साथ सौम्यता और सम्मान के साथ व्यवहार करने का निर्देश देता है। यह भी बताता है कि विवाह में दोनों भागीदारों के बीच समझ और सम्मान होना चाहिए। जब पति और पत्नी एक-दूसरे का सम्मान करते हैं और एक-दूसरे के दृष्टिकोण को समझते हैं, तो उनका संबंध मजबूत और स्थिर होता है।
4. विवाह में एकता (मत्ती 19:5-6)
"इसलिये मनुष्य अपने पिता और अपनी माता को छोड़कर अपनी पत्नी के साथ जुड़ जाएगा, और वे दोनों एक शरीर होंगे। सो वे अब दो नहीं, बल्कि एक शरीर हैं।"
यह वचन फिर से विवाह में एकता की बात करता है। जब दो लोग विवाह करते हैं, तो वे केवल एक कानूनी या सामाजिक संबंध नहीं बनाते, बल्कि वे एक नया और स्थिर संबंध बनाते हैं। बाइबल के अनुसार, विवाह दो व्यक्तियों को शारीरिक, मानसिक, और आत्मिक रूप से एक करता है। एक विवाह में पति और पत्नी दोनों को एक-दूसरे की मदद और समर्थन करना चाहिए।
5. विवाह में विश्वास और धैर्य (कुलुस्सियों 3:13)
"अगर किसी के पास किसी पर कुछ शिकायत हो, तो उसे भी जैसे मसीह ने तुम्हारी क्षमा की वैसे तुम भी एक-दूसरे को क्षमा करो।"
विवाह में धैर्य और क्षमा बहुत महत्वपूर्ण हैं। कोई भी संबंध बिना संघर्ष और चुनौतियों के नहीं होता। बाइबल हमें यह सिखाती है कि जब हमारे बीच मतभेद होते हैं, तो हमें एक-दूसरे को क्षमा करने और अपने रिश्ते को मजबूत करने के लिए धैर्य रखना चाहिए। जैसे मसीह ने हमारी गलतियों को क्षमा किया, वैसे ही हमें भी अपने जीवनसाथी को क्षमा करना चाहिए।
6. विवाह में परमेश्वर के उद्देश्य को जानना (रोमियों 12:10)
"एक दूसरे से भाईचारे में प्रेम रखो, आदर में एक दूसरे से बढ़कर सम्मान करो।"
विवाह केवल एक निजी रिश्ता नहीं है, बल्कि यह परमेश्वर के उद्देश्य को पूरा करने का एक तरीका है। जब पति-पत्नी एक-दूसरे को प्रेम और सम्मान से देखते हैं, तो उनका रिश्ता परमेश्वर की महिमा के लिए होता है। एक स्वस्थ और संतुष्ट विवाह जीवन परमेश्वर की इच्छा के अनुसार होता है।
निष्कर्ष
बाइबल के ये वचन विवाह के महत्व और उद्देश्य को स्पष्ट करते हैं। विवाह केवल दो व्यक्तियों का एक रिश्ते में बंधना नहीं है, बल्कि यह एक ऐसा पवित्र और दिव्य संबंध है, जिसे परमेश्वर ने अपनी योजना और उद्देश्य के तहत स्थापित किया है। जब हम बाइबल के सिद्धांतों को अपने विवाह जीवन में लागू करते हैं, तो हमारा रिश्ता मजबूत, खुशहाल और परमेश्वर की महिमा के लिए होता है। यदि हम अपने जीवनसाथी से प्रेम, सम्मान और समझ के साथ व्यवहार करें, तो हमारा विवाह एक उत्कृष्ट उदाहरण बन सकता है कि परमेश्वर का प्रेम और आशीर्वाद हमारे रिश्तों में कैसे काम करता है।
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