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नम्रता | Scripture Verses On Humility

नम्रता (Humility) एक ऐसा गुण है जिसे बाइबल में अत्यंत महत्वपूर्ण और मूल्यवान माना गया है। बाइबल के अनुसार, नम्र व्यक्ति ईश्वर की दृष्टि में प्रिय होते हैं और उन्हें विशेष आशीष प्राप्त होते हैं। नम्रता न केवल एक व्यक्तिगत गुण है, बल्कि यह जीवन में सच्ची सफलता और ईश्वर की कृपा पाने का मार्ग भी है। इस लेख में हम नम्रता के महत्व, यीशु मसीह के नम्र जीवन, और बाइबल के पात्रों की नम्रता के उदाहरणों को समझेंगे।

नम्रता | Scripture Verses On Humility

1. नम्रता का महत्व और लाभ

नम्रता का महत्व बाइबल के कई स्थानों पर बताया गया है। नीतिवचन 22:4 कहता है, “यहोवा का भय मानना और नम्रता से धन, आदर और जीवन मिलता है।” इसका अर्थ है कि जो व्यक्ति नम्र होते हैं, वे सच में सफल और सम्मानित जीवन जीते हैं। नम्रता हमें अहंकार से दूर रखती है और हमें सच्चाई से जीने का मार्ग दिखाती है। इसके अलावा, नम्रता हमें दूसरों से अच्छा व्यवहार करने की प्रेरणा देती है।


नम्रता का एक प्रमुख लाभ यह है कि यह हमें ईश्वर के और निकट लाती है।  मत्ती 5:5  में यीशु मसीह ने कहा, “धन्य हैं वे जो नम्र हैं, क्योंकि वे पृथ्वी के अधिकारी होंगे।” इस वचन से स्पष्ट होता है कि जो लोग नम्र होते हैं, वे अपने जीवन में शांति और संतोष का अनुभव करते हैं और ईश्वर की दृष्टि में धन्य होते हैं।


2. यीशु मसीह का नम्र जीवन

यीशु मसीह नम्रता का सबसे उत्कृष्ट उदाहरण हैं। उनका जीवन संपूर्ण रूप से सेवा, प्रेम और नम्रता से भरा हुआ था।  फिलिप्पियों 2:6-8  में बताया गया है कि “यद्यपि वह ईश्वर के रूप में था, फिर भी उसने अपने को दीन किया और एक दास का रूप धारण किया।” मसीह ने स्वर्गीय महिमा को छोड़कर मानव रूप धारण किया और सेवा में अपना जीवन व्यतीत किया। उनके जीवन का सबसे बड़ा उदाहरण उनके क्रूस पर बलिदान में देखा जा सकता है, जहाँ उन्होंने अपनी जान दी ताकि मानवजाति के पापों का क्षमा हो सके।


यीशु मसीह ने अपने शिष्यों को भी नम्रता का महत्व सिखाया। जब उन्होंने अपने शिष्यों के पैर धोए, तब उन्होंने सिखाया कि सच्चा नेतृत्व सेवा में है और सच्ची महानता दूसरों की सेवा में है। यह घटना हमें बताती है कि चाहे हमें कितनी भी सफलता क्यों न मिले, हमें नम्रता बनाए रखनी चाहिए।


3. बाइबल के पात्रों की नम्रता के उदाहरण

बाइबल में कई पात्रों के जीवन में नम्रता के महान उदाहरण देखने को मिलते हैं। 


1. मूसा

मूसा को परमेश्वर ने इस्राएल के लोगों को मिस्र से बाहर निकालने के लिए चुना था। गिनती 12:3 में मूसा के बारे में लिखा है कि “मूसा अत्यंत नम्र था।” मूसा ने हर समय परमेश्वर पर भरोसा किया और अपनी कमजोरियों को स्वीकार करते हुए ईश्वर की इच्छा का पालन किया।


2. दाऊद

दाऊद भी एक नम्र हृदय वाले व्यक्ति थे। राजा बनने के बाद भी उन्होंने कभी अभिमान नहीं किया। जब राजा शाऊल उन्हें परेशान करते थे, तब भी दाऊद ने नम्रता से बर्ताव किया और बदला लेने के बजाय शांति से काम लिया। भजन संहिता 25:9 में दाऊद की प्रार्थना में लिखा है, “वह नम्र लोगों को न्याय की शिक्षा देता है और नम्रों को अपनी राह दिखाता है।”


3. मरियम

यीशु मसीह की माता मरियम का जीवन भी नम्रता का महान उदाहरण है। जब स्वर्गदूत ने उन्हें बताया कि वे ईश्वर के पुत्र को जन्म देंगी, तो मरियम ने इस महान आशीर्वाद को पूरी नम्रता से स्वीकार किया। उनका यह नम्रता भरा हृदय ईश्वर को पसंद आया और इसलिए उन्हें एक अद्भुत आशीर्वाद मिला।


नम्रता अपनाने के लिए सुझाव

1. धन्यवाद देना सीखें:ईश्वर और दूसरों का धन्यवाद करना नम्रता की ओर पहला कदम है। इससे हमारा अहंकार घटता है और हम दूसरों की सहायता को मान्यता देने लगते हैं।

   

2. सेवा का भाव रखें: जैसे यीशु ने सेवा की, वैसे ही हमें भी सेवा का भाव रखना चाहिए। यह हमें दूसरों के प्रति सम्मान और प्रेम का भाव देता है।


3. ईश्वर पर भरोसा करें: हमें अपनी क्षमताओं पर घमंड नहीं करना चाहिए बल्कि ईश्वर पर पूरी तरह भरोसा करना चाहिए। यह हमें विनम्रता के मार्ग पर बनाए रखता है।


4. प्रार्थना और ध्यान: प्रार्थना और ध्यान के माध्यम से हम अपने अहंकार को छोड़कर नम्रता को अपना सकते हैं। 


निष्कर्ष

नम्रता हमारे जीवन में शांति, सम्मान और सच्ची सफलता का द्वार खोलती है। यीशु मसीह और बाइबल के अन्य पात्रों के उदाहरणों से हम सीख सकते हैं कि एक नम्र हृदय ईश्वर की दृष्टि में अत्यंत प्रिय होता है। नम्रता को अपनाकर हम अपने जीवन में वास्तविक शांति, प्रेम और ईश्वर का आशीर्वाद प्राप्त कर सकते हैं।


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