मसीही जीवन का मुख्य उद्देश्य परमेश्वर की महिमा करना और उसकी आज्ञाओं का पालन करना है। यह केवल धार्मिक क्रियाओं तक सीमित नहीं है, बल्कि हमारे हर दिन के आचरण में ईश्वर के वचनों का पालन करना शामिल है। इस लेख में हम मसीही जीवन की पहचान, संसार में आत्मिक जीवन जीने के उपाय और बाइबल में बताए गए पवित्र जीवन के निर्देशों को समझेंगे।
मसीही जीवन की पहचान ईश्वर के प्रति पूर्ण समर्पण और विश्वास में होती है। मसीही लोग प्रेम, दया, और नम्रता जैसे गुणों से पहचाने जाते हैं। यीशु ने यूहन्ना 13:35 में कहा, "यदि तुम एक दूसरे से प्रेम रखोगे, तो इसी से सब जानेंगे कि तुम मेरे चेले हो।" यह प्रेम सभी के प्रति होना चाहिए, चाहे वे मसीही हों या न हों।
साथ ही, मसीही जीवन की एक और पहचान उनकी पवित्रता और अलगाव में है। रोमियों 12:2 हमें सिखाता है, "इस संसार के समान न बनो, परन्तु अपने मन के नए हो जाने से रूपांतरित होते जाओ।" मसीही लोग संसार की बुराइयों से अलग रहते हैं और परमेश्वर की पवित्रता में जीवन बिताते हैं।
2. संसार में रहते हुए आत्मिक जीवन कैसे जियें
संसार में आत्मिक जीवन जीना आसान नहीं है, लेकिन बाइबल हमें इसके लिए मार्गदर्शन देती है:
1. परमेश्वर के वचनों का अध्ययन और प्रार्थना: भजन संहिता 119:105 कहती है, "तेरा वचन मेरे पांव के लिये दीपक और मेरे मार्ग के लिये उजियाला है।" नियमित प्रार्थना और बाइबल अध्ययन हमें सही दिशा में बनाए रखते हैं।
2. सही संगति का चयन: 1 कुरिन्थियों 15:33 में लिखा है, "बुरी संगति अच्छे चरित्र को बिगाड़ देती है।" आत्मिक जीवन को प्रोत्साहित करने वाले मित्रों और सहकर्मियों का चयन करें।
3. प्रलोभन का सामना: याकूब 4:7 कहता है, "परमेश्वर के आधीन हो जाओ। शैतान का सामना करो, तो वह तुमसे भाग जाएगा।" प्रलोभनों से बचने के लिए ईश्वर में विश्वास बनाए रखना जरूरी है।
4. सेवा और दया के कार्य: मसीही जीवन में सेवा का महत्वपूर्ण स्थान है। यीशु ने कहा, "जो कुछ तुम ने मेरे इन छोटे से छोटे भाइयों में से एक के लिए किया, वह मेरे ही लिए किया।" (मत्ती 25:40)। सेवा और दया आत्मिक जीवन को सशक्त बनाते हैं।
3. बाइबल में पवित्र जीवन के लिए निर्देश
बाइबल हमें पवित्र जीवन जीने के लिए स्पष्ट निर्देश देती है:
1. पवित्रता को प्राथमिकता दें: 1 पतरस 1:16 में लिखा है, "पवित्र बनो, क्योंकि मैं पवित्र हूं।" पवित्रता एक मसीही जीवन का अनिवार्य भाग है।
2. शुद्ध विचार और कर्म: मत्ती 5:8 कहता है, "धन्य हैं वे जिनके मन शुद्ध हैं, क्योंकि वे परमेश्वर को देखेंगे।" विचारों और कार्यों की शुद्धता परमेश्वर के करीब ले जाती है।
3. क्रूस उठाना: लूका 9:23 में यीशु ने कहा, "यदि कोई मेरे पीछे आना चाहे, तो वह अपनी इच्छा का इन्कार करे और अपना क्रूस उठाए।" इसका अर्थ है स्वार्थ और पापमय इच्छाओं का त्याग करना।
4. संसार से अलग रहना: 2 कुरिन्थियों 6:17 में लिखा है, "उनके बीच से निकल आओ और अलग हो जाओ।" इसका मतलब है कि पापपूर्ण वातावरण और आदतों से दूर रहना।
निष्कर्ष
मसीही जीवन एक ऐसा जीवन है जो पवित्रता और परमेश्वर के प्रति समर्पण से परिपूर्ण है। यह एक चुनौतीपूर्ण मार्ग है, लेकिन परमेश्वर के वचनों और प्रार्थना के माध्यम से इसे पूरा किया जा सकता है। जब हम संसार की बुराइयों से दूर रहकर आत्मिक जीवन जीते हैं, तो हमारा जीवन दूसरों के लिए भी प्रेरणा का स्रोत बनता है।
परमेश्वर हमें यह सामर्थ्य दे कि हम उसकी महिमा के लिए संसार में पवित्र और अनुशासित जीवन जी सकें।
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