बाइबल के आरंभिक ग्रंथ “उत्पत्ति” (Genesis) में नूह और जलप्रलय की कहानी (उत्पत्ति 6-7) विशेष रूप से उल्लेखनीय है। यह कथा परमेश्वर की न्यायपूर्णता और दया दोनों को दर्शाती है। इस लेख में हम समझेंगे कि कैसे पाप में डूब चुकी दुनिया में परमेश्वर ने नूह को चुनकर जलप्रलय के माध्यम से एक नई शुरुआत की नींव रखी।
1. पाप में डूबी दुनिया की पृष्ठभूमि
जब परमेश्वर ने सृष्टि की रचना की, तो सब कुछ अच्छा था। मनुष्य को परमेश्वर ने अपने स्वरूप में बनाया, ताकि वह प्रेम, सत्य और पवित्रता के साथ जीवन व्यतीत करे। किंतु समय बीतने के साथ-साथ मानव जाति पाप और अनैतिकता में डूबने लगी। उत्पत्ति 6:5 में वर्णन मिलता है कि मनुष्य के विचार लगातार बुरे होते चले गए।
बुराई की इस बढ़ती स्थिति में मनुष्य एक-दूसरे के प्रति क्रूर होने लगा, परमेश्वर को भूल गया और अपने स्वार्थी मार्गों पर चल पड़ा। मनुष्यों की दुष्टता देखकर परमेश्वर को अत्यंत दुःख हुआ। इस पृष्ठभूमि में जलप्रलय की कहानी शुरू होती है।
2. परमेश्वर का दुःख और न्याय
जब परमेश्वर ने देखा कि पृथ्वी पर पाप इतना बढ़ गया है कि लोग सत्य, प्रेम और न्याय के मार्ग से पूरी तरह भटक चुके हैं, तो उसने कठोर निर्णय लिया कि वह पृथ्वी पर बड़े जलप्रलय के माध्यम से पाप का नाश करेगा। इस निर्णय का आधार परमेश्वर की पवित्रता और न्याय है। परमेश्वर अत्यंत दयालु है, लेकिन वह पाप को अनदेखा नहीं कर सकता।
उत्पत्ति 6:6-7 में उल्लेख है कि परमेश्वर को मानव जाति की इस अवस्था पर दुःख हुआ। परमेश्वर ने मनुष्य को प्रेम और भलाई के लिए बनाया था, किंतु मनुष्य ने अपने स्वार्थी और अनैतिक मार्ग चुन लिए। जलप्रलय के निर्णय के पीछे परमेश्वर की मंशा थी कि वह पाप से भरी इस दुनिया को एक बार फिर शुद्ध करे और एक नए आरंभ की नींव रखे।
3. नूह का चयन
हालाँकि पूरी दुनिया पाप में डूबी थी, फिर भी परमेश्वर को नूह में एक ईमानदार, धर्मी और परमेश्वर-भक्त मनुष्य दिखाई दिया। उत्पत्ति 6:8 में लिखा है कि “नूह ने यहोवा के अनुग्रह की दृष्टि पाई।” इसका अर्थ है कि नूह अपने समय में भी परमेश्वर के प्रति समर्पित था और बुराई से दूर रहता था।
परमेश्वर ने नूह को चुना ताकि वह जलप्रलय के समय में जीवित रहे और एक नई शुरुआत का आधार बने। नूह का चयन परमेश्वर की दया और अनुग्रह का प्रतीक है। यह बताता है कि जब पूरी दुनिया बुराई में डूबी हो, तब भी परमेश्वर अपने लोगों को खोज लेता है।
4. जहाज़ (Ark) का निर्माण
परमेश्वर ने नूह को एक विशाल जहाज़ बनाने का निर्देश दिया। इस जहाज़ को “Ark” कहा जाता है। यह कोई सामान्य नाव नहीं थी, बल्कि इतना बड़ा जहाज़ था कि उसमें नूह का परिवार और सभी प्रकार के जीव-जंतु समा सकें। उत्पत्ति 6:14-16 में जहाज़ के निर्माण के निर्देश दिए गए हैं।
- आकार: जहाज़ लगभग 300 क्यूबिट लंबा, 50 क्यूबिट चौड़ा और 30 क्यूबिट ऊँचा था (एक क्यूबिट लगभग 18 इंच का होता है)।
- विभाजन: जहाज़ को कई खंडों में बाँटा गया था ताकि विभिन्न जीव-जंतुओं को अलग-अलग रखा जा सके।
- रक्षा का प्रतीक: यह जहाज़ उस आने वाले जलप्रलय से रक्षा का प्रतीक था।
नूह ने परमेश्वर की आज्ञा मानी और लंबे समय तक मेहनत कर जहाज़ का निर्माण किया। जहाज़ बनाना आसान काम नहीं था, क्योंकि उस समय इतनी बड़ी नाव की कल्पना भी लोगों के लिए विचित्र थी। फिर भी, नूह ने परमेश्वर पर विश्वास रखा और अपनी मेहनत जारी रखी।
5. पशु-पक्षियों का प्रवेश
परमेश्वर ने नूह से कहा कि वह प्रत्येक जीव-जंतु के जोड़े (नर-मादा) जहाज़ में ले आए। परमेश्वर का उद्देश्य था कि जलप्रलय के बाद पृथ्वी पर जीव-जंतुओं की पुनः वृद्धि हो सके। उत्पत्ति 7:2-3 में कहा गया है कि शुद्ध पशुओं के सात जोड़े और अशुद्ध पशुओं का एक जोड़ा जहाज़ में ले जाना था।
- शुद्ध पशु: जिन पशुओं को परमेश्वर ने बलिदान और भोजन के लिए शुद्ध माना था।
- अशुद्ध पशु: जिन पशुओं को परमेश्वर ने खास नियमों के अंतर्गत रखने को कहा था।
यह व्यवस्था दर्शाती है कि परमेश्वर केवल मनुष्यों की ही नहीं, बल्कि संपूर्ण सृष्टि की देखभाल करता है।
6. जलप्रलय का आगमन
जब सब कुछ तैयार हो गया, नूह, उसका परिवार और सभी पशु-पक्षी जहाज़ के अंदर चले गए। तब परमेश्वर ने जहाज़ का द्वार बंद कर दिया (उत्पत्ति 7:16)। इसके बाद चालीस दिन और चालीस रात तक लगातार बारिश हुई। पृथ्वी पर जलस्तर इतना बढ़ गया कि सारे पहाड़ डूब गए (उत्पत्ति 7:19-20)।
इस विनाशकारी जलप्रलय ने पृथ्वी पर जीवन को लगभग समाप्त कर दिया। केवल वही लोग और जीवित प्राणी बचे रहे जो जहाज़ के अंदर थे। जलप्रलय के दौरान जहाज़ पानी पर तैरता रहा, और नूह का परिवार और सारे जीव सुरक्षित रहे।
7. नई शुरुआत
लगभग 150 दिनों के बाद जल घटने लगा और जहाज़ अरारात नामक पहाड़ पर ठहरा (उत्पत्ति 8:4)। नूह ने समय-समय पर पक्षियों (कौआ और फिर कबूतर) को बाहर भेजा, ताकि यह जान सके कि पानी कितना घटा है (उत्पत्ति 8:6-12)।
अंततः जब पानी पूरी तरह सूख गया, तब परमेश्वर ने नूह और उसके परिवार को जहाज़ से बाहर आने का आदेश दिया (उत्पत्ति 8:15-17)। नूह ने बाहर आकर परमेश्वर को धन्यवाद दिया और बलिदान चढ़ाया। परमेश्वर ने तब नूह के साथ एक नया वाचा (Covenant) किया और इंद्रधनुष को इस वाचा का चिह्न बनाया (उत्पत्ति 9:13)। यह चिह्न बताता है कि परमेश्वर अब फिर कभी पूरी पृथ्वी पर जलप्रलय नहीं लाएगा।
8. नूह और जलप्रलय की शिक्षा
- 1.विश्वास और आज्ञाकारिता: नूह ने परमेश्वर के निर्देशों का पालन करके दिखाया कि वह परमेश्वर पर पूरी तरह विश्वास रखता है। जहाज़ बनाना और लोगों की आलोचनाओं का सामना करना आसान नहीं था, फिर भी उसने अपना भरोसा नहीं छोड़ा।
- 2.पाप का दंड: जलप्रलय से यह सीख मिलती है कि पाप का फल विनाशकारी हो सकता है। परमेश्वर पवित्र है और पाप को अनदेखा नहीं कर सकता।
- 3.दया और अनुग्रह: हालाँकि पूरी दुनिया पाप में डूबी थी, लेकिन परमेश्वर ने नूह को बचाकर अपने अनुग्रह को दिखाया। परमेश्वर दयालु है और हमेशा एक नया मौका देता है।
- 4.परमेश्वर का प्रावधान: परमेश्वर ने नूह, उसके परिवार और सभी जीवों को सुरक्षित रखने के लिए जहाज़ का इंतजाम किया। इससे पता चलता है कि परमेश्वर अपनी सृष्टि की चिंता करता है।
- 5.नई शुरुआत: जलप्रलय के बाद एक नई शुरुआत हुई। परमेश्वर ने इंद्रधनुष को इस बात का निशान बनाया कि वह फिर कभी ऐसी बाढ़ नहीं लाएगा। यह हमें आशा और भविष्य के प्रति आश्वस्त करता है।
9. नूह और जलप्रलय का आधुनिक संदर्भ
आज भी नूह और जलप्रलय की कहानी हमारे जीवन में कई स्तरों पर प्रासंगिक है। जब हमें कठिनाइयों या चुनौतियों का सामना करना पड़ता है, तब नूह के उदाहरण से हम सीख सकते हैं कि कैसे परमेश्वर पर भरोसा रखा जाए। साथ ही, जब हम पाप या बुराई में डूबे हुए समाज को देखते हैं, तो यह कहानी हमें याद दिलाती है कि परमेश्वर पवित्र और न्यायी है, लेकिन वह दयालु भी है। वह हमें सही रास्ते पर आने का अवसर देता है।
10. निष्कर्ष
“नूह और जलप्रलय” की कहानी (उत्पत्ति 6-7) परमेश्वर की न्यायपूर्णता और अनुग्रह दोनों को दिखाती है। दुनिया पाप में डूबी थी, लेकिन परमेश्वर ने नूह जैसे धर्मी व्यक्ति को चुनकर उसे एक नया मौका दिया। जलप्रलय के माध्यम से परमेश्वर ने पाप का दंड भी दिया और दुनिया को शुद्ध भी किया। इस कहानी से हमें सीख मिलती है कि हमें परमेश्वर पर भरोसा रखना चाहिए, उसकी आज्ञाओं का पालन करना चाहिए और हमेशा तैयार रहना चाहिए कि वह हमें भी नई शुरुआत का अवसर दे सकता है।
नूह और जलप्रलय का यह प्रसंग आज भी हमें अपने जीवन में सत्य, न्याय और ईश्वर के प्रति समर्पण की राह पर चलने के लिए प्रेरित करता है। यह हमें बताता है कि परमेश्वर न केवल न्याय करता है, बल्कि अपने विश्वासयोग्य लोगों को बचाने और उन्हें नई आशा देने के लिए भी सदैव तैयार रहता है।
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